Our Ch. Astrologer
Self-Spirit (The Blessing of The God)
स्वचेतना - परमात्मा का आशीर्वाद
Preface 2 ( प्रस्तावना )
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In reality we loose our Spirit due to the excessive ego and eerie thoughts which create overtly pride in our minds. Recognizing Spirit or consciousness as mere soul, people bound this spiritual energy in a limited sphere. The dysfunction and the problems that one experiences daily causes inactivity of consciousness. The reasons for the laxity of consciousness or the Spirit is fear and ego too.

Everyone knows who among us are those who abuse and exploit others. Looking around carefully, we can prepare a list of miscreants - ‘self-centred governments, administrative, politicians'; global community; people hungry for power; uneducated and poor people; 'Those who are educated, but who have a dry attitude towards society or in simple words those people who are irresponsible toward their duties can be easily fooled'; the rich and the strong people who are skilful in the art of extracting work and exploiting others make them financially and socially strong; And in the end, those people who are sticking to their superstitious ideology and orthodoxy doctrines that they do not see anything else, nor do they care about any other science-based principles and ideological ideas. They Just stuck with superstitions through ego (which becomes eerily in reality).

All these people are responsible for the fear, grief, anger, terror, fury and hatred in the world alone and collectively. These people are the sole reason behind laxity of inner-spirit.

But along with them there is another group of people who are equally responsible. And that is - "We, the common people". 'We, the common people' who are powerless; 'We, the common people' who work hard of every kind, but the credit of that hard work goes to the other strong ones; 'We, the common people' who are stressed under pressure are unimportant; 'We, the common people' who do more labour, and are unhappy, dissatisfied and disturbed; 'We, the common people' who without reasoning the fairness of the path shown by others, follow it like sheeple.; 'We, the common people' who have the ability to understand the facts and reality but do not have the courage to assimilate it in our life.

"But do you know that there is only one difference between 'We, the common people' (who are victims of exploitation) and ‘The rich and strong people' (who exploit). And the only difference is that ‘they are rich and powerful people' and we are not. Otherwise, ‘The rich and the mighty people' or 'We the common people', are all victims of the laxity of divine consciousness.

 

वास्तविक्ता में हममें व्याप्त अहम् की अधिकता व भयग्रस्त सोच, जो हमारे मन पर हावी हो जाती है, की वजह से हमारी चेतना शिथिल पड़ जाती है। अक्सर लोगबाग चेतना को मात्र प्राण समझकर, इस परमात्मिक ऊर्जा को सीमित दायरे में बांध देते हैं। नित्यप्रति अनुभव में आने वाली समस्याओं और दुष्क्रियाओं का कारण चेतना की असक्रियता ही है। चेतना की शिथिलता का कारण भय और अहम् है।

हर कोई जानता है कि हममें से वे कौन लोग हैं जो दुष्कर्म व दूसरों का शोषण करते हैं। अपने आसपास देखें तो हम दुष्कर्मियों की एक सूची तैयार कर सकते है - ‘स्वयं पर केंद्रित सरकारें, प्रशासनिक, राजनैतिज्ञ'; वैश्विक समुदाय; सत्ता के भूखे लोग; अशिक्षित व गरीब लोग; ‘शिक्षित किंतु समाज के प्रति रूखा नज़रिया रखने वाले अर्थात अपने कत्र्तव्यों के प्रति बेपरवाह वो लोग जिन्हें आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है'; अमीर व बलवान लोग जो चालाकी से काम निकालने की कला में निपुण होते हैं व दूसरों का शोषण करके स्वयं को आर्थिक व सामाजिक रूप से बलवान बनाते हैं; और अंत में वे लोग जो अपनी अंधविश्वासी विचारधारा व रूढ़िवादी सिद्धांतों से ऐसे चिपके हैं कि उन्हें न तो कुछ और नज़र आता है और न ही वे किसी दूसरे के विज्ञानसिद्ध सिद्धांतों व तात्त्विक विचारों की परवाह करते हैं; बस अहम् के मारे (वास्तविक्ता में भयग्रस्त हुए) अंधविश्वासों से चिपके रहते हैं।

यह सब लोग अकेले व सामूहिकरूप से, संसार में व्याप्त भय, दुःख, क्रोध, आतंक, रोष, राग व द्वेष आदि अवगुणों के जिम्मेदार हैं। यही लोग चेतना की शिथिलता का कारण हैं।

परंतु इन के साथ साथ लोगों का एक और समूह है जो इनके समान ही जिम्मेदार है। और वह हैं - ”हम आम लोग”। ‘हम आम लोग' जो बलहीन हैं; ‘हम आम लोग' जो हर प्रकार की मेहनत करते हैं किंतु उस मेहनत का फल दूसरे बलवान भोगते हैं; ‘हम आम लोग' जो तनावग्रस्त हैं, दबाव में हैं, महत्वहीन हैं; ‘हम आम लोग' जो अधिक श्रम करते हैं, और जो नाखुश हैं, असंतुष्ट हैं, अशांत हैं। ‘हम आम लोग' जो दूसरों के दिखाऐ रास्ते पर बिना उचित-अनुचित का ज्ञान किऐ, भेड़ बकरियों की तरह एक दूसरे के पीछे भागे चले जा रहे हैं। ‘हम आम लोग' जो वास्तविक्ता को समझने की क्षमता तो रखते हैं पर जज़्बा नहीं रखते।

”पर क्या आप जानते हैं कि ‘हम आम लोगों' में (जो शोषण का शिकार होते हैं) और शोषण करने वाले ‘अमीर और बलवान लोगों में‘ मात्र एक ही अंतर है, और वह अंतर है कि वे अमीर और बलवान लोग, ‘अमीर और बलवान लोग' हैं - बस और कुछ नहीं!” वरन् ‘हम आम लोग' हों, अथवा अमीर और बलवान लोग हों, हम सभी परमात्मिक चेतना की शिथिलता का शिकार हैं।

 

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