Our Ch. Astrologer
Self-Conciousness (The Blessing of The God)
स्वचेतना - परमात्मा का आशीर्वाद
Preface 3 ( प्रस्तावना )
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If we do neutral analysis then we will find that we readily see the miseries of those who exploit and misbehave, but never do any overview of our own delinquencies. Staying in tension, feeling self-worthless, staying under the pressure of others, unhappiness, dissatisfaction and turbulent mind; all of these are the delinquencies which are the sign of inactivity of consciousness or laxity of the Spirit. We ourselves are responsible for our own exploitation, no one else!

Due to the inertia of consciousness, exploiter produce exploitation. And due to the inertia of the same consciousness, the common people develop qualities of being exploited. It means that at the level of consciousness the people who exploit or who gets exploited are equal.

Yes, they are equal! Provide a common man with the power of wealth and authority... in a short time he will also appear in the list of exploiters. And then, along with the exploiters, he will get involved in all unfair activities to become stronger and richer.

But the actual mean to say is that the common people are not different from the one who exploits. Just the difference is so that exploiters have got wealth, power, strength and status for a long time, and common people do not get all this.

If by any measure we can eradicate those who do these misdeeds from this world; will we be able to save ourselves and our society?

No, not at all ! We'll never be able to do it! Without elevating the level of consciousness one will never be able to do so. These problems are the production of our fear-stricken world, which in one way or other will reproduce in the absence of the active consciousness.

 

यदि हम तटस्थ विश्लेषण (Neutral Analysis) करें तो पाऐंगे कि ‘हम आम लोग' शोषण व दुष्कर्म करने वालों के अवगुण तो देख लेते हैं, पर कभी अपने अवगुणों का अवलोकन नहीं करते हैं। तनाव में रहना, स्वयं को महत्त्वहीन समझना, दूसरों के दबाव में रहना, नाखुश, असंतुष्ट व अशांत मन; यह सब अवगुण ही हैं जो चेतना की शिथिलता अर्थात असक्रियता का ही परिचायक है। अपने शोषण के हम स्वयं जिम्मेदार हैं, कोई और नहीं।

चेतना की असक्रियता के कारण दुष्कर्म करने वालों में शोषण करने के गुण उपजते हैं। और उसी चेतना की असक्रियता के कारण ‘हम आम लोगों' में शोषित होने के गुण उपजते हैं। इसका अर्थ है कि चेतना के स्तर पर शोषण करनेवाला और शोषित होनेवाला बराबर हैं।

जी हां, बराबर हैं! किसी आम मनुष्य को धन-दौलत व सत्ता का बल दे कर देखिए... थोड़े ही समय में वह भी शोषण करने वालों की सूची में शामिल दिखेगा। और फिर पहले से शोषण करने वालों के साथ मिल कर और अधिक बलवान व अमीर बनने के लिए कैसे भी उचित-अनुचित कार्योें में लिप्त हो जायेगा।

परंतु इकहने का अर्थ यह है कि शोषण करने वाला हम आम लोगों से भिन्न नहीं है। बस अंतर है तो इतना कि उन्हें लंबे समय से धन-दौलत, सत्ता, बल और रुतबा प्राप्त है, और हमें यह सब प्राप्त नहीं है।

यदि किसी उपाय से हम इन दुष्कर्म करने वालों को इस संसार से मिटा सकें; तो क्या हम अपना व अपने समाज का उद्धार कर पायेंगे?

कभी नहीं कर पायेंगे! चेतना की सक्रियता का स्तर बढ़ाये बिना कभी नहीं कर पायेंगे। यह समस्याऐं हमारे भयग्रस्त संसार की उपज हैं, जो चेतना की सक्रियता के अभाव में किसी न किसी रूप में फिर से उत्पन्न हो जायेंगी।

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