Shashi Kapoor
Our Ch. Astrologer
Why Remedies For Planets Don't Work ? (ग्रहों के उपाए सफल क्यों नहीं होते ?)
Chapter 1 - (Today's Astrologers) आज के ज्योतिषी
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Often astrologers tell thousands of solutions in the name of liberation from the grives produced by the planets. But in reality, all the measures are proved sterilized. Do you know why ...?

The main reason behind this is the lack of knowledge related to the Universal Laws and the levellessness of education of astrology system. In the absence of education and knowledge, both astrologers and sufferers are only losing time, money and energy.

With the help of half-in-depth knowledge acquired by reading only few books, astrologer emphasizes on adopting unfair measures to deter the afflictions caused by the planets. And the afflicted person who is already facing hardships, not understanding the ill-natured tactics of the so-called astrologer gets trapped in the spruce woven by him, and gets not only his present but his future ruined and spoiled in the hell. And this spoiler only moves forward to the abyss, not only in this, but succeeding lives as well.

Studying astrology is a simple matter as such, but becoming an astrologer, paving the way for someone's life is a very serious and responsible task. But in the era of Capitalist Kaliyug , inexperienced and misguided astrologers have adopted every unreasonable behavior slamming the "Devine & Sanctified Science" like Astrology to the level of degeneration, and that's too to merely fulfil their own selfish greed.

And look at the irony of this age that the victims of Karmas are becoming prey to harassment by following the deteriorating form of “Astrology, The Ultimate Holy Science".

In Hindi language, Astrology is known as Jyotish . Break the word Jyotish , then two different words are received " Jyoti " and " Ish ". Jyoti means light and Ish means God. That is, astrology is the Divine Light that makes the path light, that leads us towards God. The basic purpose of light is to remove darkness. So the basic purpose of Astrology or Jyotish is to remove the darkness contained in the depths of our inner self and make our soul so enlightened that it sees its 'Absolute Form', the Divine or Paramatama .

Yes, you are thinking right - "Can astrology make Soul meet the Divine"? And the simplest of the answers is - Yes!

The Science of Astrology is as sanctified as the Supreme God. Just like an astrologer evaluates the horoscope and finds out an academic subject or field business that the person can progress in, in the same way an astrologer can pave the way of the path of knowledge which leads the Soul to God. But in order to perform such a serious job, it is essential to understand the astrology by combining it with ‘Universal Discipline'.

But it is ironic that most astrologers of the present age are practicing astrology limiting to this lifetime only (and that's too for their own benefit only).

Okay, let's assume that in today's era man wants advancement in his present life only. He is not concerned about his coming life cycle. He does not put any emphasis on whether there is a previous or future life too. He only goes to the astrologer just to solve his current problem. And the inexperienced astrologer who himself is unable to understand the Universal Doctrine, evaluates the planets related to this life only and emphasizes on adopting unfair measures to deter the afflictions caused by the planets. And the sufferer too adopts the remedy without understanding its long term impact. And all this generally results in failure. And if by chance the success is achieved, then only its consequences of such unnatural acts are faced in the future.

This is a Universal Law that the inauspicious signs like misery, suffering, disease, loss, etc. are the consequences of our sinful deeds in the past, which are presented in front of us in our life according to time. (This principle also applies to the auspicious signs of happiness, profit, good health etc. that are presented to us in present life as the consequences of our good actions in the past). Inexperienced astrologers tell the solution by compiling the present time with the calculation of the present planetary snapshot of a native. But they neither understand the Karma's methodology adopted by the native in his previous birth nor do they bother about the consequences of those ill-fated remedies in the future and next lives.

They just have to suggest remedies for NOW, regardless of the consequences that native has to face in future or next lives. The astrologer also unknowingly becomes the part of the sin.

Unfortunately, it's like bad getting worse.

One the other hand, an experienced astrologer, having real sense of nature's methodology, after understanding the karmic-system adopted by the native in his previous life, after understanding the impacts on the future of present and the next life, and only when the relevance of the remedy is proved homologous in context to the planet, advises to adopt it.

And to my belief, in the present age, there may be only few astrologers who follow Astrology in the light of Universal Laws.

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अक्सर ज्योतिषी ग्रह पीड़ा मुक्ति के नाम पर हजारों उपाय बताते हैं। लेकिन हकीकत यह की अधिकतम उपाय निष्फल सिद्ध होते हैं।जानते हैं क्यों...?

इसके पीछे का मुख्य कारण है ‘वैश्विक सिद्धांत‘ से संबंधित ज्ञान का अभाव और ‘ज्योतिष प्रणाली‘ की शिक्षा की स्तरहीनता। शिक्षा और ज्ञान के अभाव में ज्योतिषी एवं पीड़ित दोनों ही मात्र समय, पैसे और ऊर्जा का नुकसान कर रहे हैं।

मात्र कुछ किताबें पढ़कर अर्जित किए गए आधे अधूरे ज्ञान के सहारे, और मात्र पैसा कमाने के चक्कर में ज्योतिषी ‘ग्रह कष्ट निवारण‘ हेतु उचित-अनुचित कैसे भी उपायों को अपनाने पर बल देते हैं। और पीड़ित व्यक्ति जो पहले से ही कष्टों का सामना कर रहा होता है, तथाकथित ज्योतिषियों की चालों को ना समझ कर उसके द्वारा बुने गए मकड़जाल में फंस जाता है, और ना केवल अपना वर्तमान अपितु अपना भविष्य तक बिगाड़ लेता है। और यह बिगाड़ा हुआ तंत्र मात्र इस जीवन को ही नहीं अपितु आगे के जीवनक्रम को भी रसातल की ओर अग्रसर कर देता है।

ज्योतिष की शिक्षा लेना एक साधारण सी बात है, परंतु ज्योतिषी बनकर किसी के जीवन के मार्ग को प्रशस्त करना, एक अत्यंत ही गंभीर एवं उत्तरदायित्व का कार्य है। परंतु पूंजी प्रधान कलयुग में अनुभवहीन और पथभ्रष्ट हुए ज्योतिषियों द्वारा मात्र अपने स्वार्थ की पुष्टि हेतु ज्योतिष जैसे ‘परम पवित्र विज्ञान‘ को हर प्रकार के अनुचित व्यवहार द्वारा मान मर्दन कर अधोगति के स्तर पर लाकर पटक दिया गया है।

और इस युग की विडंबना देखिए कि पीड़ित व्यक्ति ज्योतिष जैसे ‘परम पवित्र विज्ञान‘ के बिगड़े हुए स्वरूप का अनुसरण करके और भी उत्पीड़न का शिकार हो रहा है।

‘ज्योतिष‘ शब्द का संधिविच्छेद करें तो दो भिन्न शब्द प्राप्त होते हैं, ‘ज्योति‘ एवं ‘ईश‘। ‘ज्योति‘ का अर्थ है ‘प्रकाश‘ तथा ‘ईश‘ का अर्थ है ‘ईश्वर‘। अर्थात ‘ज्योतिष‘ वह ‘ईश्वरिय प्रकाश‘ है जो उस पथ को प्रकाशमान बनाता है जो हमें ईश्वर की ओर अग्रसर करता है। प्रकाश का मूल उद्देश्य अंधेरा दूर करना होता है। सो ज्योतिष का मूल उद्देश्य हमारे अंतकरण की गहराइयों में निहित अंधेरे को दूर करके हमारी आत्मा को उसके परिशुद्ध स्वरूप अर्थात परमात्मा के दर्शन कराना है।

जी हां आप सही सोच रहे हैं - क्या ज्योतिष विद्या आत्मा को परमात्मा से मिला सकती है? तो सरल सा उत्तर है - हां!

ज्योतिष विद्या ईश्वर की ही भांति ‘परम पवित्र‘ है। जिस प्रकार एक ज्योतिषी जन्मपत्रिका अध्ययन कर इस बात का पता लगाता है कि जातक किस विषय अथवा व्यवसाय में उन्नति कर सकता है, ठीक उसी प्रकार एक ज्योतिषी उस ज्ञान मार्ग को प्रशस्त कर सकता है जो आत्मा को परमात्मा तक ले जाता है। बस आवश्यकता है तो ज्योतिष विद्या एवं ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को जोड़कर समझने व अनुसरण करने की।

परंतु विडंबना है कि वर्तमान युग के अधिकतर ज्योतिषी ज्योतिष विद्या को मात्र इस जीवनकाल तक ही सीमित रख कर (वह भी मात्र अपने लाभ के लिए) प्रयोग में ला रहे हैं।

चलिए मान लेते हैं कि आज के युग में मनुष्य अपने वर्तमान जीवन में ही उन्नति चाहता है। उसे अपने आने वाले जीवन चक्र से कोई मतलब नहीं है। वह इस बात पर कोई बल नहीं देता है कि पिछला अथवा अगला जीवन भी होता है या नहीं। वह तो किसी ज्योतिषी के पास मात्र तत्कालीन समस्या के निवारण हेतु जाता है और आज के अनुभवहीन व ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को समझने में अक्षम ज्योतिषी भी मात्र इस जीवन से संबंधित ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन करके उस समस्या का निवारण करने के लिए कुछ भी उचित-अनुचित उपाय करने के लिए कह देते हैं। और पीड़ित व्यक्ति उस उपाय को बिना उसका दीर्घकालिक प्रभाव समझे कर लेता है और साधारणतया विफलता ही परिणाम स्वरुप सामने आती है। और यदाकदा सफलता प्राप्त होती भी है तो उसके दुष्परिणाम जातको भविष्य में भुगतने ही पढ़ते हैं।

यह ‘वैश्विक सिद्धांत‘ है कि दुख, कष्ट, बीमारी, व्याधि, हानि इत्यादि अशुभ संकेत पूर्व में हमारे द्वारा ही किए गए पाप कर्म का परिणाम होते हैं, जो कि समय के अनुसार हमारे जीवन में उत्पन्न होते रहते हैं। (यही सिद्धांत सुख, लाभ, प्रसन्नता इत्यादि शुभ संकेतों पर भी लागू होते हैं)।

अनुभवहीन ज्योतिषी वर्तमान ग्रह-गोचर की गणना से वर्तमान समय को अनुकूल करने के लिए उपाय बता देते हैं, परंतु वह ना तो उस जातक के पिछले जन्मों में अपनाई गई ‘कर्म-पद्धति‘ को समझ पाते हैं और ना ही उपायों से भविष्य या अगले जन्मों में उत्पन्न होने वाले कुप्रभावों को समझ पाते हैं।

उन्हें तो बस अभी के लिए उपाय सुझाने हैं, फिर चाहे उस उपाय का जो भी परिणाम हो। वह ज्योतिषी भी अनजाने में ही पाप का भागी बन जाता है।

वहीं एक अनुभवी और ‘प्राकृतिक सिद्धांत‘ को समझने व मानने वाला योगी (ज्योतिषी) जातक के पिछले जन्म में और अब तक के बिताए हुए जीवन की ‘कर्म-प्रणाली‘ को समझ कर और भविष्य के जीवन व अगले जन्मों पर पड़ने वाले प्रभाव को समझ कर और समाधान की ‘ग्रह के अनुकूल प्रसांगिकता‘ सिद्ध होने पर ही उसे करने का परामर्श देता है।

और मेरे अनुसार वर्तमान युग में ‘प्राकृतिक सिद्धांत‘ के अनुसार ‘ज्योतिष विद्या‘ का अनुसरण करने वाले कुछ ही ज्योतिषी होंगे।

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