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Love Shani (शनि से करें प्रेम)
Chapter No. 6 - (Shani's workability as per Vedic Astrology) ज्योतिष शास्त्र में शनि
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Lord Shani is active in the period of his Mahadasha, Antardasha, Sadhe - Sati and Dhaiya . In these periods, he judges our gathered-karmas and consequently produce gratifications or mourns and greaves.

He is able to grant wealth, good health, property and kingly luxuries and comforts.

And on a contrary, he is able to cause a king becoming poorest of the man.

But whatever he does, does to purify our existence so that we could perform appropriate karmas in the future. We can say that whatever greaves or gratifications come in the period of activeness of Shani, the reason is clear. And the soul reason is our welfare ( Kalyana).

The purification of our sins and rewards, which are basically the resultants of our own good or bad karmas of past and readying us as a pure soul for future traits is the main motive of Lord Shani. And only a pure soul can do such philanthropic act, who is capable of looking every being with equal sight without any sort of discrimination.

And that's the reason that nature's disciplinary system has authorised and designated Shani as a Magistrate who could give it a wallop with his staff.

Saturn's Significance among all planets:

As per Indian Vedic astrology, there are 12 planets, 12 astro-signs, 27 constellations (Nakshatras) and 108 Navamsa . And all these cosmic units have their own domain to work.. But what kind of result will a planet produce in particular Navamsa of a particular Nakshatra in a particular astro-sign in a particular period, falls under the jurisdiction of Lord Shani.

Shani evaluates astrological aspects of the moment and directs the planets to produce specific result. And to my opinion only a pure energy is capable of performing such a responsible job, who has all the knowledge of Karmas .

And to successfully accomplish Such an act of Paramount, the Nature' s disciplinary system has provided him two assistants who are invisible yet oldest energies of the universe called Rahu and Ketu.

Ketu being the oldest of the Planets, remains alive even at the time of cataclysm of the universe. He stores every Karma being performed by us and Rahu stores all the information of our future.

In general there can't be a comparison of any Planet with other planets or cosmic units, because every unit has its own working domains. Still in my opinion, Shani is an incomparable energy that lights our path to a proper and appropriate destination (objective).

"In my opinion as Lord Shiva among Trinity, is to make the most strenuous effort at the time of destructing the universe, Lord Shani in the same fashion has to act on the most difficult task of making us pure and perfect for future traits."

Like Shiva, from exterior maybe dreadful but basically he is the state of Supreme ecstasy and as simple as a baby, Shani in the same way, from exterior may look to be a havocking, but at the innermost level he is the 'Super-Favouring-Purest' of the souls.

श्री शनिदेव जी महाराज हमारी जन्मपत्री के अनुसार उनकी महादशा व अंतरदषा में अधिक सक्रिय होते हैं। श्री शनिदेव जी महाराज की साढे-साती और ढ्ईया की समयावधि में भी वह अधिक सक्रिय होकर, पूर्व में हमारे ही द्वारा संचित कर्मों के अनुरुप ही सुख-दुःख रूपी फल प्रदान करते हैं।

यदि पूर्व में अच्छे कर्मों के कारण अधिक ‘पुण्यरूपी संसकार संचित हों तो श्री शनिदेव जी महाराज हमें राजातुल्य भोग प्रदान करते हैं व भविष्य में भी हमारे द्वारा अच्छे कर्मों का सम्पादन होता रहे, इसका प्रबंध करते हैं।

और यदि पूर्व में अनुचित कर्मों की अधिकता के कारण पापरूपी संसकार अधिक संचित हों तो श्री शनिदेव जी महाराज दंड स्वरूप मृत्युतुल्य कष्टों का भागी बना कर हमें सबक देते हैं ताकि हमारे द्वारा भविष्य में पाप कर्मों की पुनःवृति न हो।
तो हम कह सकते हैं कि श्री शनिदेव जी महाराज की सक्रिय समयावाधि में कैसा भी भोग या भुगतान हो, उसके पीछे का कारण सपष्ट है! और वह है - हमारा कलयाण।

पूर्व में किए उचित-अनुचित कर्मों द्वारा उपजे पाप-पुण्य रूपी संसकारों की निवृति करना एवं हमें उज्जवल भविष्य के लिए शुद्धरुप से तैयार करना ही श्री शनिदेव जी महाराज का उद्देश्य है, और यह कार्य वही कर सकता है जो बिना किसी भेदभाव के सभी प्राणियों के प्रति समद्रष्ट हो कर कार्य कर सके।

और इसीलिए ‘प्राकृतिक सहिंता‘ अर्थात ‘जीवन चक्र प्रबंधन‘ में श्री शनिदेव जी महाराज को एक कड़क न्यायाधीश की जिम्मेदारी सौंपी गई।

ग्रहों में शनिदेव का महत्वः

ज्योतिष् शास्त्र के अनुसार, हमारी जन्म पत्री में 12 ग्रह, 12 राशियाँ, 27 नक्षत्र, 108 पद नवांश हैं। और इन सभी इकाइयों का अपना अपना कार्य क्षेत्र है। परंतु कौन सा ग्रह किस राशी के किस नक्षत्र के किस पद में बैठ कर क्या फल प्रदान करेगा, इसका निर्णय श्री शनिदेव जी महाराज ही करते हैं।

और इतना महत्त्वपूर्ण कार्य तो कोई पवित्र शक्ति ही कर सकती है जिसे सभी के कर्मों का संपूर्ण ज्ञान हो।

और उनके इस कार्य की सफलता के लिए राहु एवं केतु के रूप मे दो सहायक भी अदृश्य रूप से कार्य करते हैं। केतु हमारे बीते हुए सभी जन्मों में किए कर्मों को इकठ्ठा करता रहता है। और राहु हमारे भविष्य को परिभाषित करता है।

वैसे तो किसी ग्रह की किसी दूसरे ग्रह या राशी नक्षत्र से कोइ तुलना नहीं हो सकती, क्योंकि सभी को अपने अपने कार्यक्षेत्र सौंप गए है, तो भी मेरे मत में श्री शनिदेव जी महाराज एक ऐसी अतुल्निय ऊर्जा हैं जो हमारे जीवन को सही व उचित मार्ग दिखाते हैं।

"मेरे मत में, जिस प्रकार त्रीदेवों में भगवान शिव को सबसे कठिन कार्य (संहार) करना होता है, ठीक वैसे ही श्री शनिदेव जी महाराज को नवग्रहों में सबसे कठिन कार्य (कर्मों के फल प्रदान करके संचित संस्कारों की निवृती करना और हमें भविष्य के लिए परिशुद्ध करना) करना होता है।"

‘और जिस प्रकार शिव शंकर भोलेनाथ बाहरी रूप से कितने ही रौद्र दिखाइ दें पर मूलरूप से परमानंद व भोलेभंडारी हैं... उसी प्रकार श्री शनिदेव जी महाराज बाहरी रूप से कितने ही काले या भयंकर प्रतीत हों परंतु मूलरूप से परमपवित्र एवं परमहितेशी हैं।‘

 

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