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Love Shani (शनि से करें प्रेम)
Chapter No. 3 - (King Dashratha's Prayer) राजा दशरथ द्वारा शनि की स्तुति
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As per Indian Vedic mythology the King Dashrath, the father of Lord Rama, worshipped Lord Shani by praising his many forms:

He praised:

"Namah Krishnaaye Neelaaye SheetiKanthNibhaaye Cha|

Namah KaalagniRoopaye Krataantaaye cha vai namah||

Namo NirmaansDehaaya DeergshmaShruJataaya Cha|

Namo VishaalNetraaye ShushkodarBhayaakratey||

Namah PushkalGaatraye SthoolRomaney Cha Vai Punah|

Namo Deerghaaye Shushkaaye Kaaldranshtar Namostutey||

Namastey KotRakshaaye DurNirikshyaaye Vai Namah|

Namo Ghoraaye Roudraaye Bheeshnaaye karaaliney||

Namastey SarvaBhakshaaye Balimukh Namostutey|

SuryaPutra Namostutey Bhaskar-abhayeDaaye cha||

AdhoDrashtey NamasteyAstu Sanvartak Namostutey|

Namo MandGatey Tubhyam TisTrinShaaye Namostutey||

Tapsaa DagdhaDehaaye Nityam Yogarataaye Cha|

Namo Nityam Kshudhaartaaya Atriptaaya Cha Vai Namah||

GyaanaChakshurNamasteyastu Kasyapaatmajsunavey|

Tushto Dadaasi Vai Raajyam Rushto Harsi Tatkshanaat||

DevasurManushyaayshch SidhVidhyaDharoragaah|

Tavyaa Vilokitaah Sarvey Naasham Yaanti Samooltah|

Prasaadam kurumey dev VaraarHoHamPugaatah||

Translation:-

"The body of Shani is of dark and blue complexion, who looks like Lord Shankar. For the universe he is the fire of death (Kaalagni ) who imitates like a dreadful demon, posing terrible, frightful, horrible, green and awful posture".

"His body resembles the human skeleton who keeps long moustache, beard and stiff and curly hairs. He has pilling hairs (balls of fluffs) all over his wife spreaded body. He has a very tall and wide but dry body structure. And his denture is like the god death (kaalroop). His eyes are very deep like a horrified hollow ocean that it is almost impossible to look upon. He is extremely atrocious, dire, horrific and ghostly. He posses like a powerhouse that devours everything. He is the son of the Sun who grants excuses and liberates one from the mourns and grieves of the past, present and coming lives".

"He looks downward and is a slow Walker. He resembles a sword who has burned his body by the fiery-penance. He is always busy doing Yoga and always hungry and never forgiving. And if he is satisfied, he will grant the boon of Prosperous Kingdom and if he is indignant he will devour the kingdom in the fraction of moment".

"His sight causes destruction equally to demigods, demons, human beings, perfectionists ( Siddha ) and enlighted ones".

It is believed that a person suffering the consequences of his own karmas in the period of activeness of Shani should pray to him seeking his blessings by chanting his above-mentioned forms. Lord Shani promised King Dashratha that whoever will worship him with these names will never be feared of him, even in his dreams!!!

 

 

ज्योतिष विद्या पर वापस आएं तो तो जन्मपत्री में शनि की 2 राशियां हैं मकर तथा कुंभ। शनिदेव 3 नक्षत्रों के स्वामी हैं पुष्य, अनुराधा, एवं उत्तरभाद्रपद। वैसे शनि का संबंध शनिवार से भी है।

दशरथ जी द्वारा शनिदेव की स्तुतीः

पद्मपुराण में दशरथ जी व शनिदेव का संवाद है जो कि हिंदू धर्म में शनिदेव की कृपा प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
एक बार जब शनि देव कृतिका नक्षत्र के अंतिम पाए में गोचर कर रहे थे। तब ज्योतिषियों ने राजा दशरथ जी को बताया कि अब शनिदेव रोहिणी नक्षत्र को भेदकर जाने वाले हैं जिसका फल मनुष्य तो क्या देव दानवों को भी भयंकर होता है। पृथ्वी पर तो 12 वर्ष का भयंकर अकाल पड़ने वाला है यह सुनकर सब लोग व्याकुल हो गए। तब राजा ने श्री वसिष्ठ जी को बुलवाकर उनसे इसका उपाय पूछा। श्री वसिष्ठ जी बोले कि यह योग ब्रहमा आदि से भी असाध्य है, इसका परिहार कोई नहीं कर सकता।

यह सुनकर राजा परम साहस धारण कर दिव्य रथ में अपने दिव्यास्त्रों सहित बैठकर सूर्य के सवा लाख योजन ऊपर नक्षत्र मंडल में गए और वहां रोहिणी नक्षत्र के पिछले भाग में स्थित होकर उन्होंने शनिदेव को लक्षित करके धनुष पर संहारास्त्र को चढ़ा कर अपने कानों तक खींचा।

शनिदेव यह देखकर तनिक डर तो गए पर हंसते हुए बोले कि राजन तुम्हारा पौरुष उद्योग और तप सराहनीय है। मैं जिस की तरफ देखता हूं वह देव-दैत्य कोई भी हो भस्म हो जाता है। पर मैं तुम्हारे तप और उद्योग से प्रसन्न हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो वही वर मांगो।
राजा ने कहा कि जब तक पृथ्वी चंद्र सूर्य आदि हैं तब तक आप कभी रोहिणी का भेदन ना करें। शनि ने एवमस्तु कहा। तदनंतर शनि ने कहा हम तुमसे बहुत ही प्रसन्न हैं तुम और वर मांगो। तब राजा ने कहा कि मैं यह मांगता हूं कि आप शकट भेद कभी न कीजिए और 12 वर्ष अकाल भी ना हो। शनि ने यह वरदान भी दे दिया।

इसके बाद महाराज दशरथ ने धनुष को रख दिया और वे हाथ जोड़कर शनिदेव की इस प्रकार स्तुति करने लगे।

 

श्री शनिदेव वंदना

नमः कृष्णाय नीलाय षितिकण्ठनिभाय च।

नमः कालाग्निरुपाय कृतान्ताय च वै नमः।।

नमो निर्मांसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।

नमो विषालनेत्राय शुष्कोदरभयाकृते।।

नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोमणे च वै पुनः।

नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोेस्तु ते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नमः।

नमो घोराय रौद्राय भीष्णाय करालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोेस्तु ते।

सूर्यपुत्र नमस्तेेस्तु भास्करेेभयदाय च।।

अधोदृष्टे नमस्तेेस्तु संवर्तक नमोेस्तु ते।

नमो मंदगते तुभ्यं निस्त्रिंषाय नमोेस्तु ते।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेेस्तु कष्यपात्मजसूनवे।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्ष्णात्।।

देवासुरमनुष्याष्च सिद्धविद्याधरोरगाः।

त्वया विलोकिताः सर्वे नाषं यान्ति समूलतः।

प्रसादं कुरु मे देव वरार्होेहमपुगातः।।

अनुवादः-

दशरथ जी प्रेम व श्रद्धा सहित बोले - जिनके शरीर का वर्ण कृष्ण नील तथा भगवान शंकर के समान है, उन शनि देव को नमस्कार है। जो जगत के लिए काल-अग्नि और कृतांत रूप हैं, उन शनैश्चर को बारंबार नमस्कार है। जिनका शरीर कंकाल है जिनकी दाढ़ी मूंछ और जटा बड़ी हुई हैं, उन शनिदेव को प्रणाम है। जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट और भयानक आकार है, उन शनिदेव को नमस्कार है।

जिनके शरीर का ढांचा फैला हुआ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लंबे चैड़े किंतु सूखे शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़रूप, उन शनिदेव को बारंबार प्रणाम है। हे शनि, आपके नेत्र खोखले के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना भी अत्यंत कठिन है! आप घोर, रौद्र, भीषण और विकराल है, आपको नमस्कार है।

हे बलीमुख, आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है। हे सूर्यनंदन! हे भास्कर पुत्र! अभय देने वाले देवता! आपको प्रणाम है। नीचे की और दृष्टि रखने वाले शनि देव भगवान! आपको नमस्कार है। हे संवर्तक! आपको प्रणाम है। मंद गति से चलने वाले शनैश्चर! आप का प्रतीक तलवार के समान है, आपको पुनः पुनः प्रणाम है।

आप ने तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर दिया है, आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं, आपको सदा सर्वदा नमस्कार है। हे ज्ञाननेत्र! आपको प्रणाम है। हे कश्यप नंदन सूर्य के पुत्र शनि देव! आपको नमस्कार है। आप संतुष्ट होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण हर लेते हैं।

देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग यह सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते हैं। हे देव! मुझ पर प्रसन्न हों, मैं वर पाने के योग्य हूं और आपकी शरण में आया हूं।

इस प्रकार स्तुति सुनकर शनि देव अत्यंत प्रसन्न हुए और पुनः वर मांगने को कहा। राजा ने मांगा कि आप किसी को पीड़ा ना पहुंचाएं। शनि ने कहा यह असंभव है, क्योंकि जीवों के क्रमानुसार दुःख सुख देने के लिए ही ग्रहों की नियुक्ति है, अतः हम तुमको यह वर देते हैं कि जो तुम्हारी इस स्तुति को भक्तिमय होकर पूर्ण विष्वास व श्रद्धासहित कहेगा, वह पीड़ा से मुक्त हो जाएगा।

हे राजन! किसी भी प्राणी जन्मपत्री के मृत्यु स्थान, जन्म स्थान या चतुर्थ स्थान में रहूं तो उसे मृत्यु का कष्ट दे सकता हुँ, किंतु जो श्रद्धा से युक्त, पवित्र और एकाग्रचित हो मेरी लोहे की सुंदर प्रतिमा का शमी-पत्रों से पूजन करके, तिल मिश्रित उड़द-भात, लोहा, काली गांव या काला वृषभ ब्राह्मण को दान करता है और पूजन के पश्चात हाथ जोड़कर मेरे स्तोत्र का जप करता है उसे मैं कभी भी पीड़ा नहीं दूंगा। गोचर में, जन्म लग्न में, दशाओं तथा अंतर दशाओं में ग्रह पीड़ा का निवारण करके मैं सदा उसकी रक्षा करूंगा। इसी विधान से सारा संसार पीड़ा से मुक्त हो सकता है।

तीनों वर पाकर राजा दशरथ अपना रथ पर आरूढ़ होकर श्री अयोध्या जी को लौट आए।

 

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