ग्रहों के उपाए सफल क्यों नहीं होते ?

Chapter 3 - उपाय सफल क्यों नहीं होते ?

 

सबसे पहले तो यह समझ लें कि ‘ग्रह‘ अपनेआप में कोई समस्या नहीं हैं कि जिन का उपाय किया जाए। समस्या हमारे कर्मो की है जिनका ‘समाधान‘ करना चाहिए।

मेरे मत में ‘उपाय‘ शब्द ही प्रयुक्त नहीं करना चाहिए। परंतु आज के अनुभवहीन ज्योतिषियों की देन यह शब्द किसी हद तक ठीक भी लगता है। ‘उपाय‘ दो शब्दों से जुड़ कर बना है - ‘उप‘ तथा ‘आय‘‘उप‘ का अर्थ है ‘सहायक‘ या ‘अतिरिक्त‘ और ‘आय‘ का अर्थ है ‘कमाई‘ या ‘आंमदनी‘। तो पीड़ित व्यक्ति द्वारा किया गया ‘उपाय‘ आज के अनुभवहीन ज्योतिषियों के लिए ‘अतिरिक्त कमाई‘ का साधन अवश्य बन गया है।

मेरे मतानुसार ‘समाधान‘ शब्द प्रयुक्त करना चाहिए। ‘समाधान‘ दो शब्दों से जुड़ कर बना है - ‘सम‘ तथा ‘आधान‘‘सम‘ का अर्थ है ‘एक रूप‘ और ‘आधान‘ का अर्थ है ‘रखना‘। तो ‘समाधान‘ का अर्थ हुआ - एक रूप में रखना या एकरूपता रखना अर्थात ‘अनेक रूप न रखना‘।

 

 
 
 

समस्या हमारी व हमारे कर्मो की है जिन्हें हम प्रकृति से ‘एकरूप‘ नहीं रख पाते हैं। समस्या हमारे व्यवहार की है कि हम भीतरी और बाहरी रूप से समान नहीं हैं। समस्या हमारे चरित्र की है कि हम बाहरी रूप से, वो भी मात्र दूसरों से झूठा सम्मान प्राप्त करने के लिए, उचित कर्म करने का दिखावा तो करते हैं, किंतु हमारी कटु-वास्तविक्ता को अपने भीतर छुपा कर रखते हैं। और प्रकृति दोहरे मापदंड नहीं अपनाती।

जिस दिन हमारे कर्म ‘एक रूप‘ होंगे अर्थात हमारी ‘कथनी व करनी‘ एक जैसी हो जाएगी अर्थात जिस दिन हमारे कर्म हमारे विचारों का सच्चा आइना बन जाऐंगे अर्थात जिस दिन हमारे कर्म ‘वैश्विक सिद्धांत‘ के अनुरुप हो जाएंगे, उसी दिन हमारे कर्मों से उत्पन्न कष्टों का समाधान भी स्वतः ही हो जाएगा।

समझना चाहिए कि समस्या हमारे ही पूर्व में किए कर्मों से उपजती है। ज्योतिषी द्वारा गणना करने के उपरांत कुछ समाधान बताएं जाते हैं। अब यह ज्योतिषी का अनुभव तथा उसका ‘प्रकृति‘ तथा ‘ईश्वर‘ के प्रति जुड़ाव है जो यह सिद्ध करता है कि वह किसी जन्मपत्रि का ‘वैश्विक सिद्धांत‘ के अनुरुप विश्लेषण कर भी पाता है अथवा नहीं।

एक बात तो तय है कि जो ज्योतिषी ‘कर्मों के सिद्धांत‘ को नहीं समझता है वह किसी की समस्या का विश्लेषण करने को एवं उसका समाधान सुझाने को ‘प्राकृतिक व परमात्मिक रूप से‘ प्रमाणित नहीं है। किसी आधुनिक विद्यालय से ज्योतिषी की डिग्री प्राप्त कर लेना‘ तथाकथित उपायों (अतिरिक्त आय के स्रोत) के लिए तो प्राधिकृत कर सकता है, परंतु समस्या के समाधान की विश्वसनीयता तो ईश्वर के आशीर्वाद के बिना सिद्ध नहीं हो सकती। और ईश्वर का आशीर्वाद उसे ही प्राप्त हो सकता है जो ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को अपने जीवन में उतार सकता है, क्योंकि ‘वैश्विक सिद्धांत‘ ‘इश्वर का सिद्धांत‘ हैं। प्रकृति का आदर करते हुए उसके साथ ‘विश्वासरूपी रिश्ता‘ कायम कर पाने वाला ज्योतिषी ही किसी की समस्या का ‘समाधान‘ निकालने को योग्य हो सकता है। और ‘विश्वास का रिश्ता‘ ‘जन्मों का रिश्ता‘ होता है।

 
       
     
       
 

और अब बारी आती है पीड़ित की, जो ज्योतिषियों के पास अपनी समस्या का निराकरण करवाने के लिए जाता है। वैसे तो यह हर मनुष्य का धर्म है कि वह स्वयं को ‘वैश्विक सिद्धांत‘ से जोड़े। ऐसा करने पर समस्या का ‘समाधान‘ करवाने के लिए ज्योतिषियों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे, क्योंकि वह स्वयं ही उस समस्या का कारण समझ जाएगा।

तो भी यदि किसी ज्योतिषी द्वारा कोई ‘समाधान‘ सुझाया गया है तो यह उस पीड़ित व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह यह समझे कि ‘समाधान‘ तर्कसम्मत है अथवा कुतर्कसम्मत है। अधिकतर यही देखने में आता है कि अनुभवहीन ज्योतिषी के चक्कर में पड़कर पीड़ित और भी अधिक उत्पीड़न का शिकार हो जाता है।

   
       
     
       
 

यह इस कलयुग की विडंबना है कि ज्योतिषी स्वयं तो ग्रहों को जानते समझते हैं नहीं, परंतु उनका ‘उपाय‘ जरूर बताते हैं। यह बात हरकिसी को समझनी चाहिए कि ग्रह जानबूझकर किसी को कष्ट नहीं देते हैं। वह तो मात्र प्रकृति के निर्देशों का पालन कर रहे हैं। मेरी दृष्टि में, मेरी समझ में और मेरे विश्वास में, हर ग्रह केवल और केवल अच्छा ही है।

परंतु अनुभवहीन ज्योतिषियों ने उन्हें ‘सौम्य‘ व ‘क्रूर‘ ग्रहों के नाम से विभाजित कर दिया है। जो ग्रह हमें जड़बद्ध संसार में बांधकर रखते हैं उन्हें तो वो सौम्य एवं पूजनीय बताते हैं। वहीं जो ग्रह वास्तविकता में हमारे कर्मों का निराकरण कर हमें परिशुद्ध करते हैं और हमें मोक्ष व मुक्ति का मार्ग सूझाते हैं उन्हें क्रूर, आसुरी एवं कश्टकारी बतलाते हैं।

इसके पीछे का कारण तो आप अब समझ ही गए होंगे - लालच !

   
       
     
       
 

शनि, राहु एवं केतु जैसी सबसे शुद्ध एवं पवित्र ऊर्जाओं को भद्दे नाम से पुकारते हैं। यह अनुभवहीन और ‘वैश्विक सिद्धांतों‘ को समझने में अक्षम ज्योतिषियों की ही कारगुजारी है कि जिन ऊर्जाओं को वह तनिक भी समझ नहीं पाए, उनसे भयभीत होकर न केवल स्वयं उन्हें नजरअंदाज किया वरन् अन्य लोगों में भी उनके प्रति भय का वातावरण बना दिया और उस भय का लाभ उठाते हुए ग्रहों के लिए व्यर्थ के उपाय करने लगे।

हर व्यक्ति को यह बात ठीक से समझ लेनी चाहिए कि कोई भी ग्रह किसी भी जातक को कष्ट या दुःख नहीं देते हैं। ग्रह ‘ईश्वरीय शक्तियां‘ हैं, जिन्हें ‘प्रकृति द्वारा‘ ‘सृष्टि व्यवस्था‘ का कार्यभार सौंपा गया है। ग्रह मात्र मनुष्यों पर ही प्रभाव नहीं दिखाते वरन् हमारी सृष्टि की हर संरचना पर प्रभाव दिखाते हैं।

अगर इस पूरी सृष्टि से तुलना करें, तो मनुष्य इसका एक अंग मात्र ही है। ग्रह, नक्षत्र, तारे, यह सभी अपनी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं जिससे यह ‘प्राकृतिक सृष्टि‘ क्षण प्रतिक्षण आगे बढ़ रही है। और इस सृष्टि का अंग होने के कारण हम भी इन ‘ईश्वरीय शक्तियों‘ से प्रभावित होते रहते हैं।

परंतु यह सत्य सभी को समझ लेना चाहिए कि जिस प्रकार पिछला बीता हुआ क्षण मर कर ही न एक क्षण को जन्म देता है, ठीक उसी प्रकार हमारे द्वारा पूर्व में किए गए कर्म ही आगे सुख या दुःख को प्रस्तुत करते हैं। यदि पिछला क्षण न मरे तो अगला क्षण नहीं आएगा, वैसे ही यदि हम कर्म ना करें तो सुख व दुःख भी उत्पन्न नहीं होंगे। परंतु जैसे हर क्षण को बीतना ही है और नए क्षण का जन्म होना ही है, वैसे ही हमारे द्वारा कर्म होने ही हैं और कर्मफल के रूप में सुख दुःख आने ही हैं।

यह ‘वैश्विक सिद्धांत‘ है जिसे कोई ज्योतिषी बदल नहीं सकता है। आप के ‘संचित कर्म‘ ही कर्मफल के रूप में आपके सामने प्रस्तुत किए जाते हैं। यह प्रस्तुतीकरण का दायित्व ग्रहों को सौंपा गया है।

 

   
       
     
       
 

ग्रहों के विषय में एक और ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को समझ लीजिए कि ‘केतू‘ एक ऐसा ग्रह है जो हर बीत चुके क्षण को अपने अंदर संजोकर रखता है। ‘राहु‘ हर आने वाले क्षण की संरचना को जानता है। इस प्रकार यह दो ग्रह हमारे द्वारा हो चुके और होने वाले हर कर्म को जानते हैं, इसलिए इन दोनों ग्रहों को ‘कर्म-प्रधान ग्रह‘ की संज्ञा दी गई है।

शनि को न्यायाधीश की उपाधि दी गई है। राहु-केतु द्वारा हमारे ही कर्मों का जैसा खाका शनि के सामने रखा जाता है, शनि उसी के अनुसार न्याय करते हैं, और सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र आदि ‘कार्यपालक ग्रहों‘ को निर्देश देते हैं कि वे किस प्रकार का कर्मफल प्रस्तुत करें। शनि कर्मफल दाता हैं, परंतु वह स्वयं से नहीं अपितु अन्य कार्यपालक ग्रहों के माध्यम से सुख-दुःखरूपी ‘भोग‘ या ‘भुगतान‘ प्रस्तुत करवाते हैं।

विडंबना देखिए कि करनी हमारी है और उपाय ग्रहों के लिए किए जाते हैं। हम भी शिक्षा व ज्ञान के अभाव में मात्र अनुभवहीन ज्योतिषियों के कहे अनुसार उपाय करते रहते हैं।

तो बताइए जिस ग्रह ने कुछ किया ही नहीं है वह आपके द्वारा किया गया उपाय कैसे स्वीकार करेगा। और अगर स्वीकार करलेगा तो इसका सीधा सा अर्थ होगा कि वह दोषी हैं।

मित्रों! ‘परमात्मिक ज्ञान‘ का तकाजा तो यही कहता है कि प्रकृति किसी भी एसे ग्रह को इतना उतरदायित्व वाला कार्य नहीं सौंपेगी जो दोषी हो। शनि, राहु, केतु, सूर्य आदि ग्रह, रोहणी, पुष्य आदी नक्षत्र, मेष, वृष्भ आदि राशियां, इत्यादि सभी ‘ईश्वरिय गुणों‘ से युक्त इकाइयां हैं। और जहाँ ‘इश्वरिय गुण‘ होंगे वहाँ ‘अनुशासनरूपी कठोरता‘ तो हो सकती, परंतु कोई ‘नकारात्मक दोष‘ नहीं हो सकता।

‘करनी तो हमारी है‘, सो ‘समाधान‘ तो ‘हमारी करनी‘ का ही करना पड़ेगा। हमें ही ऐसे कर्म करने पड़ेंगे कि ‘राहु‘ हमारे लिए एक उज्जवल भविष्य की संरचना अपने भीतर संजो सके। अर्थात हमें ही ‘वैश्विक सिद्धांत‘ के अनुरूप कर्म करने होंगे।

सभी ग्रह ‘वैष्विक शक्तियां‘ हैं। हम इन ऊर्जाओं का प्रयोग अपने भविष्य को सुधारने के लिए तो कर सकते हैं, परंतु कर्मफल से बचने के लिए नहीं कर सकते। यह ‘वैश्विक सिद्धांत‘ है कि जैसे कर्म होंगे वैसे ही फल प्रस्तुत किए जाएंगे, और इस नियम को कोई नहीं बदल सकता। (यदि कोई ज्योतिषी इस नियम को उलटकर उपाय बताने का दावा करता है तो वह मात्र अपने स्वार्थ की पुष्टि हेतु ही ज्योतिष-विज्ञान का गलत प्रचार एवं प्रयोग कर रहा है) । पूर्व में हमारे ही द्वारा किए गए कर्मों से उत्पन्न हुए दुःखों व कष्टों के निवारण के लिए यदि हम कैसे भी उपाय करेंगे वे निश्चय ही निष्फल होंगे, क्योंकि कर्मफलदाता शनि और अन्य किसी भी ‘ईश्वरिय ऊर्जा‘ को आप महंगे रत्न, पूजा (वो भी आपके लिए किसी और के द्वारा की गई पूजा) , मंत्र, यंत्र, उपाय, टोटके आदि से बेवकूफ नहीं बना सकते। रिश्वत के लेन-देन से मनुष्य लोक में तो कार्य चल सकता है, परंतु ‘वैश्विक सत्ता‘ में रिश्वत का प्रयोग भविष्य के लिए हानिकारक ही सिद्ध होगा।

परंतु यदि भविष्य को सुधारना चाहें तो ‘वैश्विक प्राकृतिक सिद्धांतों‘ के अनुसार ‘ज्योतिष विद्या‘ का अनुसरण करके आप यह जान सकते हैं कि भविष्य में किन-किन ग्रहों का प्रभाव अधिक होगा, तो उन ग्रहों की ऊर्जा को ‘वैश्विक सिद्धांत‘ के अनुरुप अपने कलयाण हेतु अवश्य ही प्रयोग में ला सकते हैं। और ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को सरल भाषा में समझने के लिए ‘स्वचेतना‘ का अघ्ययन अवष्य ही करना चाहिए।

ग्रहों के गुण-स्वरूप को समझकर, उनकी प्रकृति को समझकर, उनके दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए जीवनयापन करने से व उनसे संबंधित दिव्य रत्न, रुद्राक्ष, यंत्र आदि को विश्वास सहित धारण करने से उन ग्रहों की ‘सक्रिय समयावधि‘ में आप दिव्य और अलौकिक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। और आने वाले भविष्य एवं अगले जन्मों की उज्जवल रूपरेखा ‘राहु‘ में जमा करवा सकते हैं।

मेरे मतानुसार यह हर माता पिता का कर्तव्य है कि वे अपनी संतान के उज्जवल भविष्य के निर्माण के लिए उनके बचपन से ही किसी अनुभवी तथा ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को मानने वाले ज्योतिषी को जन्मपत्री पढ़वाकर उनका अनुसरण करें।

हे ईश्वर! स्वचेतना जागृत हो !!!

   
       

 

 
 
Our Ch. Astrologer

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