सूर्य का एक धूर्त और कपटी चेहरा भी है जिसे अधिकतर ज्योतिषी नकार देते हैं। सूर्य धोखेबाजी और झूठ बोलने में माहिर है। पौराणिक काल में राजाओं को 64 कलाओं को सीखना होता था। झूठ बोलना, ढोंग व छल करना, धोखेबाजी करना, जुआ खेलना इत्यादि 64 कलाओं में ऐसी ही कुछ कलाएं थीं।
जन्मपत्री में यदि सूर्य अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो तो ये अवगुण जातक में भी विद्यमान होते हैं।
युधिष्ठिर जो महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर के राजा (सूर्य के गुणवाले) हुए, जो पांडवों में ज्येष्ठ थे, जो न्याय परायणता की मूर्ति थे, जो धर्मराज कहलाते थे, उनमें जुआ खेलने की कमजोरी थी। उन्होंने युद्ध में विजयप्राप्ति हेतु झूठ और छल का सहारा लिया था। रणभूमी में आचार्य द्रौण को परास्त करने के लिए उनके पुत्र अष्वत्थामा की मृत्यु का झूठा समाचार पांडवों द्वारा छलपूर्वक फैलाया गया। और जब आचार्य द्रौण ने युधिष्ठिर से पूछा तो युधिष्ठिर ने शोरोगुल के वातावरण में आचार्य द्रौण से उस झूठ कथन की पुष्टि की।
इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जिनमें राजा द्वारा झूठ और छल का सहारा लिया दिखाया गया है। राजा युधिष्ठिर द्वारा जुए के खेल में अपना राजपाठ, सभी भाई एवं पत्नि को हार जाना भी इन्हीं अवगुणों को बताता है।
तो भी यहां यह अवश्य कहना होगा कि हमारे सूर्य द्वारा छल व असत्य भाषण के पीछे का उद्देश्य मात्र जन साधारण का कल्याण ही है।