महत्वपूर्ण तथ्य - प्रायः लोग ऐसा कहते हुए मिल जाते हैं कि लाखों उपायों के बाद भी परिस्थिति नहीं सुधरती है। इसका कारण है, ग्रह अथवा देव से आत्मिक स्तर तक अपनत्व का संबंध स्थापित ना करना। सूर्यदेव को अंतर्मन से पिता मानकर मनाइए, तभी शीघ्र तथा वांछित परिणाम मिल पाएंगे।
सूर्यदेव सिंह राशि के स्वामी हैं। कृतिका नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के स्वामी भी सूर्यदेव हैं।
किसी जातक की जन्म पत्री में यदि सूर्य देव की अशुभ परिस्थिति के कारण कठिन समय बीत रहा हो तो सबसे पहले तो जातक को अंधेरे क्षेत्रों में नहीं जाना चाहिए। रात्रि के समय सोने से पूर्व सूर्य देव के चित्र के दर्शन करके और उनके बीज मंत्र का इस प्रकार उच्चारण करके सोना चाहिए -
।। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ।।
घर व कर्म स्थान की पूर्व दिशा को उचित रूप से रोशन करना चाहिए। पूर्व दिशा को उचित रूप से साफ रखना चाहिए। पूर्व दिशा की यात्रा से बचना चाहिए। सरकारी अधिकारियों व अपने उच्चाधिकारियों से संयम से बात करनी चाहिए। गुस्से पर नियंत्रण रखना चाहिए।
हर प्रकार के नशे और व्यसन से बचना चाहिए।
सूर्य उदय के समय श्रद्धा पूर्वक सूर्य देव का स्मरण करना चाहिए। लाल या मेरून रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। यदि किसी दूसरे ग्रह की दृष्टि के कारण सूर्य जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं, तो उस ग्रह के लिए भी समाधान अपनाने चाहिए।
12-मुखी रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए। वैदिक मान्यता के अनुसार 12-मुखी रुद्राक्ष में भगवान सूर्य नारायण व भगवान शिव का आशीर्वाद समाहित है।
गायत्री मंत्र सूर्य का प्रिय मंत्र कहा गया है। प्रातः काल सूर्य के समक्ष खड़े रहकर इस मंत्र का श्रद्धा पूर्वक जाप करना चाहिए।
मर्यादा का आचरण करें। उस काल में किसी प्रकार का वचन ना दें और यदि दे दिया है तो वचन भंगकर अनादर ना करें। झूठ, फरेब, धोखेबाजी से बचें। जुआ न खेलें।
प्रातः काल स्नान के उपरांत इन मंत्रों से भगवान सूर्य का श्रद्धा पूर्वक पूजन करें -
जपाकुसुम संकाशं महाद्युतिम।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽसिम दिवाकरम।।
अनुवादः
जो जपापुष्प के समान अरुणिमा आभा वाले, महान तेज से संपन्न, अंधकार के विनाशक, सभी पापों को दूर करने वाले, तथा महा ऋषि कश्यप के पुत्र हैं, उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूं।
यदि जन्मपत्री में सूर्य शुभ भाव के स्वामी हैं, परंतु कमजोर हैं अर्थात किसी क्रूर ग्रह की दृष्टि से ग्रस्त हैं तो सूर्य का शुभ-आशीष प्राप्त नहीं होता है। ऐसी परिस्थिति में माणिक रत्न धारण करना श्रेष्ठ रहता है परंतु माणिक रत्न शुद्ध एवं वैदिक मंत्रों से अभिमंत्रित हो, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।
सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त करने का सरल उपाय उनके प्रति श्रृद्धा व उनकी भक्ति ही है। वे पितातुल्य हैं, उन्हें महंगे महंगे रत्न इत्यादि से मूर्ख बनाने का प्रयास व्यर्थ है। वे स्रजनकर्ता हैं, सो हमारा अच्छा बुरा जानते हैं।
यदि पिता से कुछ चाहिए तो स्वयं को उनका बालक बनाना होगा। उसके उपरांत यह विश्वास रखना होगा कि जो हमारे हित में होगा, सूर्यदेव पिता की भाँती वही करेंगे। कोई पिता अपने बालक का अहित नहीं कर सकता।
बालक बन कर यदि भक्ति करें तो सूर्यदेव न केवल वांछित फल प्रदान करते हैं अपितु आत्मतत्त्व का ज्ञान भी प्रदान करते हैं। जैसा की उन्होंने हनुमान जी को ज्ञान दिया (भगवान राम के परमभक्त हनुमान जी के गुरू सूर्य थे जिन्होंने हनुमान जी को ज्योतिष सहित कईं अन्य विज्ञानों से भी परिचय करवाया था)।
भक्त की भक्ति से प्रसन्न सूर्यदेव मनुष्य तो क्या असुरों को भी अपनी ही भांती कईं विद्याओं का स्वामी बना देते हैं।
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‘सूर्यदेव के गुणवान चरित्र को समझकर जीवन में धारण कीजिए और मन की गहराइयों से उन्हें अपना पिता मानिए। मुझे पूर्ण विश्वास है कि सूर्यदेव एक दयालु पिता की भांती आपका हाथ भी पकड़ेंगे और आपको इस नारकिय जीवन अर्थात भवसागर से मुक्ति का मार्ग भी सुझाऐंगे।‘