यह तो सभी जानते हैं कि सूर्य के प्रकाश को यदि एक प्रिस्म में से गुजारा जाए, तो इसका प्रकाश 7 विभिन्न रंगों की किरणों में परिवर्तित होने लगता है। यह सात रंग अन्य सात ग्रहों से संबंधित हैं। यदि थोड़ा सा और गहराई से कहें, तो सूर्य में अन्य सभी ग्रहों के कुछ ना कुछ गुण समावेशित हैं। या यूं भी कह सकते हैं कि अन्य सभी ग्रह सूर्य के ही भिन्न-भिन्न गुणों का विस्तारित रूप हैं। आईए समझें।
बृहस्पति व सूर्य
बृहस्पति की भांति सूर्य देव बुद्धिमता बढ़ाने वाले, दयावान व धर्म निष्ठा को बढ़ाने वाले है। बृहस्पति की ही भांति सूर्य भी एक शिक्षक व पंडित हैं। वास्तविकता में सूर्य एवं बृहस्पति परम मित्र हैं। अंतर इतना है कि सूर्य क्षत्रिय हैं, जो युद्ध वीरों के कारक हैं। वही बृहस्पति ब्राह्मण कहे गए हैं, जो पंडितो गवं बुद्धिजीवियों के कारक है। दोनों ही ग्रह पुरुष ग्रह हैं, और स्वामित्व को दर्शाते हैं। यदि जन्मपत्री में परिस्थिति नकरात्मक हो तो बृहस्पति की ही भांति सूर्य भी आडंबरपूर्ण, अत्याचारी एवं तानाशाही प्रकृति प्रदान कर सकते हैं।
मंगल व सूर्य -
सूर्य क्षत्रिय ग्रह है, राजा हैं, सो अपने प्रकाश के माध्यम से अपने अधिकार क्षेत्र का निरंतर विस्तार करते रहते हैं। और इस प्रकरण में कई युद्ध करने पड़ते हैं। निरंतर युद्ध में सम्मिलित रहने से क्रोध बहुत आता है। पर यह क्रोध मंगल जैसे अन्य क्षत्रिय ग्रह से भिन्न होता है। सूर्य राजा है तो जानता है कब क्रोध को शांत करना है। वहीं मंगल सेनापति है, जो अपने क्रोध को लंबी अवधि तक मन में समाए रहते हैं। सूर्य मंगल से पृथक क्षमादान में विश्वास रखते हैं, क्योंकि राजा लोग विजय से अधिक अपने मान सम्मान को अधिक महत्व देते हैं। सूर्य अपने क्रोध को जल्दी ही ठंडा कर लेते हैं परंतु मंगल बहुत लंबे समय तक अपने मन में बदले की भावना को दबाएं रहते हैं और समय आने पर अपनी भावनाओं को अपनी कार्यशैली में परिवर्तित कर देते हैं।
चंद्र व सूर्य -
ऐसा माना जाता है कि पुरुष व नारी शक्ति एक दूसरे के पूरक है पौराणिक कथाओं के अनुसार भी भगवान शिव का अर्धनारीश्वर रूप यही दर्शाता है कि किस प्रकार पुरुष व नारी की शक्तियां एक दूसरे की पूरक होती हैं पुरुष में नारित्व व नारी में पुरुषत्व के गुण यही दर्शाते हैं। सूर्य व चंद्र भी कई मायनों में एक दूसरे के पूरक हैं सूर्य में बच्चों का लालन पोषण करने का गुण है जो कि वास्तविकता में चंद्र (नारी) का कार्यक्षेत्र है। वहीं चंद्र बच्चों की, सांसारिक बुराइयों से रक्षा करता है व उन्हें भविष्य में, संसार में व्याप्त कुरीतियों का सामना करना सिखाता है, जो कि वास्तविकता में सूर्य (पुरुष) का कार्यक्षेत्र है।
दंभी राजा होने के उपरांत भी, सूर्य में थोड़ी सी व्यवहारिकता भी है, जो वास्तविक रुप से चंद्र के प्रभाव में अधिक देखने में आती है। कहने का तात्पर्य यह है कि सूर्य में कुछ अंश चंद्र प्रकृति के भी विद्यमान है।
बुद्ध व सूर्य -
ग्रहों में बुद्ध को राजकुमार कहा गया है, और सूर्य का सबसे निकटतम व प्रिय मित्र कहा गया है। बुद्ध बुद्धिमता का परिचायक है, जिसे एक ‘दिव्य दूत' की उपाधि प्राप्त है, जो पिता कारक सूर्य से संकेत प्राप्त करके ही जातक पर अपना प्रभाव डालता है। वही यहां यह बताना भी उचित होगा कि सूर्य बुद्ध के बिना स्वयं को ठीक से व्यक्त भी नहीं कर सकते हैं। सोचिए, यदि बुद्ध ही नहीं होगा तो दिव्य संकेतों को हम तक कौन पहुंचाएगा। बुद्ध सूर्य में नीहित बुद्धिमता व चतुराई का विस्तारित रूप है।
शुक्र व सूर्य -
सूर्य स्वयं रचनाकार व सृजनकर्ता है। और शुक्र कला व रचनात्मकता का प्रतीक है। तो भी दोनों ग्रह धुर विरोधी हैं। एक स्वयं राजा है, व दूसरा रानी का सिपहसालार है। एक बलशाली राजा धृतराष्ट्र है, तो दूसरा शकुनी है जो हर समय राजा के खिलाफ अपनी रानी के कान भरता रहता है। शकुनि कि कुटल नीतियों व चालों के कारण ही धृतराष्ट्र की बुद्धि वक्र हुई और हस्तिनापुर का पतन हुआ।
पर यहां यह भी स्मरण रखना चाहिए कि सूर्य कला व रचनात्मकता को शुद्ध व सूक्ष्म रुप से अपनाते हैं। इसका तात्पर्य यह नहीं कि शुक्र सूक्ष्म स्तर पर कार्य नहीं कर सकते। परंतु यह भी सत्य है कि शुक्र की सर्जनता सूर्य पर निर्भर करती है। जन्मपत्री में सूर्य संतान भाव का कारक है और शुक्र दांपत्य का इन दोनों का सामंजस्य सुखी वैवाहिक जीवन का आधार माना गया है। शुक्र राजसिक गुणों वाला ग्रह है, जिसे राजा की तरह राजसिक शान-ओ-शौकत और ऐश-ओ-आराम से जीने का गुण सूर्य समान राजा से ही प्राप्त हुआ है।
शनि व सूर्य -
शनि व सूर्य
यह जो त्यागने अर्थात वैराग्य का भाव शनि में आया वह अपने पिता से ही प्राप्त किया। जिस प्रकार राजा अपनी प्रजा के लिए भेदभाव नहीं करते हैं उसी प्रकार कर्मफल प्रदान करते समय शनि भी जातकों में भेदभाव नहीं करते हैं। यह गुण भी शनि ने अपने पिता सूर्य से पाया है। शनि ने रुढ़िवादी, जड़ता, कट्टरपंथी, क्रूरता, कठोरता, इत्यादि गुण सूर्य से प्राप्त किए हैं। भगवान शिव की आराधना करके शनि ने सूर्य के समान शक्तियां मांगी थी, जिन्हें भगवान शिव ने प्रदान भी किया था।
तो कह सकते हैं कि शनि सूर्य का ही उल्टा रूप है। दोनों का उद्देश्य एक ही होता है, परंतु कार्यशैली बिल्कुल विपरीत है। दोनों ही जातक के उज्जवल भविष्य को सुधारना चाहते हैं। परंतु जहां सूर्य का रोष जातक पर कुछ ही काल रहता है, वहीं शनि जातक को आत्मिक स्तर तक परिशुद्ध करने के लिए लंबी अवधि तक प्रताड़ित कर सकते हैं। और कहीं इन दोनों ग्रहों की शक्तियों का तालमेल सही व उचित रूप से हो जाए तो जातक को जीवन में बहुत तरक्की मिलती है, उसका भविष्य उज्जवल होता है।
राहु, केतु व सूर्य -
राहु व केतु अदृश्य ग्रह हैं। सूर्य के प्रकाश में जो अदृश्य अल्ट्रावायलेट और इन्फ्रारेड किरणों का समावेश है वह राहु व केतु को ही परिभाषित करती हैं। यह दोनों ग्रह अति उत्तेजक ऊर्जाएं हैं। इनके प्रभाव से दूसरे ग्रहों की शक्तियाँ कई गुना बढ़ती और सिकुड़ती हैं।
चंद्र ग्रह पर सूर्य का प्रकाश पड़ने से उत्पन्न होने वाली छाया के उत्तरी एवं दक्षिणी प्रतिबिंब है - राहु एवं केतु, जिनका सीधा प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर पड़ता है।
जिस प्रकार सूर्य हमारे वास्तविक व्यक्तित्व का दर्शन कराता है उसी प्रकार राहु हमारे उस बाहरी व्यक्तित्व को दर्शाता है जिसे हमने पिछले कई जन्मों के दौरान बनाया है, वहीं केतू हमारे आंतरिक व्यक्तित्व की झलक प्रदान करता है। साधारण भाषा में समझे तो राहु एवं केतु सूर्य को प्रभावित कर हमारे वास्तविक व्यक्तित्व को बहिर्मुखी या अंतर्मुखी बनाते हैं।
राहु सौर ऊर्जा से उत्पन्न वह अदृश्य शक्ति है, जो बाहरी जगत में हमारे आत्मविश्वास और हमारी रचनात्मकता दर्शाती है। नकरात्मक संदर्भ में, सूर्य पर राहु का प्रभाव हमें स्वार्थी, दंभी, अति गौरवशाली, व अहंकार में उन्मादी बनाती है।
वहीं सूर्य व केतु में कई समानताएं दिखती हैं। सूर्य में केतु के समान विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता है। केतु की भांति या केतु के प्रभाव में सूर्य तीव्र एकाग्रता, गहरी अनुभूति एवं गहरे तक भेदने वाली अंतःदृष्टि प्रदान करते हैं। केतु को तीक्ष्ण ऊष्णता सूर्य से ही प्राप्त हुई है। केतु उस कठोर पिता का गुस्सा है जो अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की खातिर उन्हें डांटता है। केतु सूर्य का जिद्दीपन है। केतु सूर्य की वो न्यायप्रियता है जो जातक को पिछले कर्मों से जोड़े रखती है। केतु सूर्य में निहित वास्तविक ज्ञान का भंडार है।