श्री शनिदेव जी महाराज हमारी जन्मपत्री के अनुसार उनकी महादशा व अंतरदशा में अधिक सक्रिय होते हैं। श्री शनिदेव जी महाराज की साढे-साती और ढ्ईया की समयावधि में भी वह अधिक सक्रिय होकर, पूर्व में हमारे ही द्वारा संचित कर्मों के अनुरुप ही सुख-दुःख रूपी फल प्रदान करते हैं।
यदि पूर्व में अच्छे कर्मों के कारण अधिक ‘पुण्यरूपी संस्कार संचित हों तो श्री शनिदेव जी महाराज हमें राजातुल्य भोग प्रदान करते हैं व भविष्य में भी हमारे द्वारा अच्छे कर्मों का सम्पादन होता रहे, इसका प्रबंध करते हैं।
और यदि पूर्व में अनुचित कर्मों की अधिकता के कारण पापरूपी संस्कार अधिक संचित हों तो श्री शनिदेव जी महाराज दंड स्वरूप मृत्युतुल्य कष्टों का भागी बना कर हमें सबक देते हैं ताकि हमारे द्वारा भविष्य में पाप कर्मों की पुनःवृति न हो।
तो हम कह सकते हैं कि श्री शनिदेव जी महाराज की सक्रिय समयावाधि में कैसा भी भोग या भुगतान हो, उसके पीछे का कारण सपष्ट है! और वह है - हमारा कल्याण।
पूर्व में किए उचित-अनुचित कर्मों द्वारा उपजे पाप-पुण्य रूपी संसकारों की निवृति करना एवं हमें उज्जवल भविष्य के लिए शुद्धरुप से तैयार करना ही श्री शनिदेव जी महाराज का उद्देश्य है, और यह कार्य वही कर सकता है जो बिना किसी भेदभाव के सभी प्राणियों के प्रति समद्रष्ट हो कर कार्य कर सके।
और इसीलिए ‘प्राकृतिक सहिंता‘ अर्थात ‘जीवन चक्र प्रबंधन‘ में श्री शनिदेव जी महाराज को एक कड़क न्यायाधीश की जिम्मेदारी सौंपी गई।
ग्रहों में शनिदेव का महत्वः
ज्योतिष् शास्त्र के अनुसार, हमारी जन्म पत्री में 12 ग्रह, 12 राशियाँ, 27 नक्षत्र, 108 पद नवांश हैं। और इन सभी इकाइयों का अपना अपना कार्य क्षेत्र है। परंतु कौन सा ग्रह किस राशी के किस नक्षत्र के किस पद में बैठ कर क्या फल प्रदान करेगा, इसका निर्णय श्री शनिदेव जी महाराज ही करते हैं।
और इतना महत्त्वपूर्ण कार्य तो कोई पवित्र शक्ति ही कर सकती है जिसे सभी के कर्मों का संपूर्ण ज्ञान हो।
और उनके इस कार्य की सफलता के लिए राहु एवं केतु के रूप मे दो सहायक भी अदृश्य रूप से कार्य करते हैं। केतु हमारे बीते हुए सभी जन्मों में किए कर्मों को इकठ्ठा करता रहता है। और राहु हमारे भविष्य को परिभाषित करता है।
वैसे तो किसी ग्रह की किसी दूसरे ग्रह या राशी नक्षत्र से कोई तुलना नहीं हो सकती, क्योंकि सभी को अपने अपने कार्यक्षेत्र सौंपे गए हैं, तो भी मेरे मत में श्री शनिदेव जी महाराज एक ऐसी अतुलनीय ऊर्जा हैं जो हमारे जीवन को सही व उचित मार्ग दिखाते हैं।
मेरे मत में, जिस प्रकार त्रीदेवों में भगवान शिव को सबसे कठिन कार्य (संहार) करना होता है, ठीक वैसे ही श्री शनिदेव जी महाराज को नवग्रहों में सबसे कठिन कार्य (कर्मों के फल प्रदान करके संचित संस्कारों की निवृत्ती करना और हमें भविष्य के लिए परिशुद्ध करना) करना होता है।
‘और जिस प्रकार शिव शंकर भोलेनाथ बाहरी रूप से कितने ही रौद्र दिखाइ दें पर मूलरूप से परमानंद व भोलेभंडारी हैं... उसी प्रकार श्री शनिदेव जी महाराज बाहरी रूप से कितने ही काले या भयंकर प्रतीत हों परंतु मूलरूप से परमपवित्र एवं परमहितेशी हैं। |