सबसे पहले तो अच्छे से यह जान लें कि, आलस करना, झूठ बोलना, अन्याय करना, धोखा देना, माता-पिता, पत्नि और बच्चों के प्रति कर्तव्य से विमुख होना, कर्मस्थान पर फरेब करके दूसरे की सम्पति को अपना बनाने की हसरत मन में पालना, बेईमानी से कमाई करना, इत्यादि दुष्कर्म करने वालों के लिए श्री शनिदेव जी महाराज काल समान हैं।
वहीं सत्यभाषी, संतोषी, कर्मठ, इमानदार, माता-पिता की सेवा को अपना धर्म मानने वाला, पत्नि व बच्चों के प्रति कर्तव्य निभाने वाला, गुरुसेवा एवं देवपूजा में मन लगाने वाला और अपने व्यवसायिक कर्म में इमानदार एवं सदैव सजग रहने वाला ही श्री शनिदेव जी महाराज की कृपा का पात्र बन सकता है।
- श्री शनिदेव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु, शनिवार की रात्रि शनि देव के मंदिर में जा कर सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
- उसके उपरांत श्री शनिदेव जी महाराज की प्रतिमा पर सरसों के तेल से अभिषेक करें व उनके चरण पकड़कर इस प्रकार दबाएं कि जैसे पीड़ा से मुक्त करने हेतु पिता के चरण दबाए जाते हैं।
- उसके उपरांत इस मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री शनिदेव जी की प्रतिमा की 8 परिक्रमाएं करें -
ॐ शं शनैश्चराय नमः
- तदोपरांत श्री शनिदेव जी महाराज के समक्ष बैठ कर ‘श्री शनि चालीसा‘, ‘श्री शनि वंदना‘ एवं ‘श्री शनिअष्टोतरशतनामवली‘ का भक्तिमय होकर पूर्ण विश्वास व श्रद्धा सहित पाठ करें।
- उसके उपरांत श्री शनिदेव जी महाराज से अपनी सभी त्रुटियों के लिए मन से क्षमा याचना करें एवं भविष्य में सदबुद्धि हेतु करबद्ध होकर सविनय निवेदन करें।
महत्वपूर्ण -स्मरण रखें, श्री शनिदेव जी के दर्शन् के उपरांत भगवान श्री हनुमान जी के दर्शन आनिवार्यत्तः करें। श्री हनुमान जी के भक्त सदैव श्री शनिदेव जी की विशेष कृपा के पात्र रहते हैं।
अत्यंत महत्वपूर्ण -आप भी मन लगा कर श्री शनिदेव जी महाराज को, भोले बाबा की ही भांती परम पवित्र और भोला-भाला मानकर आदर सहित मनाएं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि श्री शनिदेव जी महाराज आपकी भक्तिमय विनती अवश्य स्वीकार करेंगे और आप एक सफल, निरोगी व आनंदमय जीवन का भोग कर पाएंगे।
स्मरण रखें, आपका विश्वास, आपकी श्रद्धा और आपकी लगन ही सफलता की कुंजी है। यदि श्री शनिदेव जी महाराज को मनाना चाहते हैं तो ऊपरलिखित को जीवन में उतारना ही होगा।
शनि देव की सक्रिय अवधि के समय यदि आप भी कष्टदायक समय का अनुभव कर रहे हो तो सबसे पहला और महत्वपूर्ण कार्य जो आप कर सकते हैं वह है - जो हो रहा है उसे उसी रुप में स्वीकार करें। और जितना हो सके उन पलों को जीएं, बजाय इसके कि आप अनिष्ट के भय से कहीं भागने का प्रयास करें। क्योंकि यह अटल सत्य है कि कर्म योनि में जन्म लेने के उपरांत कोई भी अपने ही किए हुए कर्मों के फल को भोगे बिना अथवा भुगतान किए बिना कहीं नहीं भाग सकता।
याद रखिए किसी महंगे रत्न या मात्र दिखावे की पूजा, और वह भी किसी और के द्वारा आपके लिए की गई पूजा से, आप शनिदेव को ठग नहीं सकते। शनिदेव को रिश्वत देना आपकी जीवन की सबसे बड़ी मूर्खता ही साबित होगी।
यदि आप वास्तविकता में अपने द्वारा किए गए पाप कर्मों के फल से बचने के लिए शनिदेव को प्रसन्न करना चाहते हांे, तो मेरी समझ में सबसे अच्छा होगा शनिदेव से वैसा ही आत्मिकरूप से संबंध स्थापित किया जाए जैसा आत्मिक संबंध हमने शिव, राम, कृष्ण आदि देवों से स्थापित किया है। और यह तो सभी जानते हैं कि प्रेम का रिश्ता ही सबसे अधिक महत्व का होता है।
‘मेरी समझ में शनि देव को गुरु धारण करना व स्वयं को उनका शिष्य मान लेना बहुत हितकर होगा। परंतु याद रहे शनिदेव के गुरुकुल में दाखिला इतना भी आसान नहीं है। उनके गुरुकुल में प्रवेश से पूर्व “अपनी मैं” और अहंकार को बाहर दरवाजे पर ही त्यागना होगा, धीरज रखना होगा, विनीतरूप होना होगा और आज्ञाकारी बनना होगा। और अपने ही कर्म के फल को भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।‘
"एक बात तो पक्की है कि शनिदेव शानदार गुरु हंै।" उन के सानिध्य में आप अच्छाइयों से भरे एक सरल जीवन को जीने की कला अवश्य सीखेंगे। आप दयालु बनेंगे। ऐसी बुद्धिमता प्राप्त होगी जिससे यह समझेंगे कि अंधेरे व दुख के समय में भी महान सुख का रहस्य छिपा है जो स्वयं को उजागर करने ही वाला है।‘
शनिदेव की पाठशाला में जाने के लिए आप को निरंतर प्रयास करने होंगे। आपको प्रेम का संबंध जीवित रखना होगा और ऐसा करने के लिए उनके मंत्रों को श्रद्धा एवं प्रेमपूर्वक जाप करना और ऐसे लेख व साहित्य पढ़ना जिनसे शनिदेव की वास्तविकता पता चलती हो एक उचित मार्ग हो सकता है।
देखने में शनि देव भगवान शिव के समान ही लगते हैं उनका रूप, उनके भाव, रंग, गुण, बहुत कुछ शिव के ही समान हैं इसलिए शनि की सक्रियता के दिनों में भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना समझदारी भरा कदम होगा।
शिवपुराण के अनुसार रुद्राक्ष भगवान शिव का ही रूप है, अर्थात रुद्राक्ष भगवान शिव के आशीर्वाद से सुवरित हैं। वहीं 7-मुखी रुद्राक्ष में शनि देव की अलौकिक शक्तियों व उनके आशीर्वाद का वास कहा है। मेरे मत में (और ऐसा मैंने कहीं जातकों पर अनुभव किया है) 7-मुखी रुद्राक्ष के कम से कम 3 दानें अवश्य ही धारण करना चाहिए। इनके प्रभाव से न जाने कितनी ही बार शनि की सक्रिय अवधि में चमत्कारी प्रसंग अनुभव किए हैं। (और हाँ, 7-मुखी रुद्राक्ष में महामाई लक्ष्मीदेवी जा का भी आशीर्वाद भी वास करता है)।
वहीं, बिना जन्मपत्री जाँचे, शनिदवे की कृपा प्राप्ती हेतु नीलम रत्न धारण नहीं करना चाहिए। स्मरण रखें, रत्न किसी ग्रह की नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों ही प्रकार की शक्तियों को बढ़ा सकता है। इसलिए जन्मपत्री को नक्ष्त्रों व उनके पदों के स्तर तक गहराई से जाँच करने के उपरांत ही रत्न धारण करना चाहिए। रत्न जन्मपत्री में ‘शुभ किंतु कमजोर ग्रह‘ की शुभता को बढ़ाने के लिए ही धारण करना चाहिए। यदि जन्मपत्री में ग्रह अशुभ हो तो किसी भी परिस्थिती में रत्न धारण नहीं करना चाहिए। ग्रह की शुभता व अशुभता का ज्ञान किसी योग्य व अनुभवी ज्योतिषी से करवाना ही समझदारी है। रत्न का प्रयोग ग्रह की शुभता को बढ़ाने के लिए ही करना चाहिए। यदि जन्मपत्री में ग्रह अशुभ हो तो किसी भी परिस्थिती में रत्न धारण नहीं करना चाहिए। ग्रह की शुभता व अशुभता का ज्ञान किसी योग्य व अनुभवी ज्योतिषी से करवाना ही समझदारी है।
याद रखें आप शनिदेव को रिश्वत देकर नहीं मना सकते। आप तो उनसे विनम्र विनती ही कर सकते हैं कि वह आपको वास्तविक ज्ञान सिखाएं, कि जिससे आप भविष्य में उचित मार्ग पर चल सकें।
और अंत में यह भी याद रखें कि आपका विश्वास, आपकी श्रद्धा और आप की लगन ही सफलता की कुंजी है।
यदि शनिदेव को मनाना चाहते हैं तो ऊपर लिखित को जीवन में उतारना ही होगा ! शनिदेव से प्रेम करना ही होगा!
कहिए -
ओ न्यायधीश ! ओ कर्मों के देवता !
‘मैं आपके चरणों में विनयपूर्ण होकर, बिना कुछ चाहे, प्रेमसहित प्रणाम अर्पित करता हूँ, कृपया स्वीकार करें!‘
धन्यवाद !!!
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