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महिलाओं ने यह उक्ति अवश्य सुनी होगी कि रजस्वला का संबंध Moon Cycle से है। हालांकि आज के अध्ययन Moon Cycle व मासिकधर्म के संबंध का कोई आधिकारिक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करते हैं। तो भी ऐसा संभव है कि इतिहास के किसी काल में दोनों चक्रों का संबंध होने से नारी को अथवा समाज को अथवा दोनों को ही कोई विकासपरक लाभ होता होगा। या किसी ऐसे काल में संबंध रहा हो सकता है कि जब मानवता में प्रकृति के प्रति ( अर्थात नारी शक्ति के प्रति ) गहरी संवेदना तथा आदर था। वैदों के गूढ़ ज्ञान को आत्मसात करने वाले बुद्धिजीवी इस बात को भलीभांती जानते हैं कि वैदिक काल में नारी को शक्तिस्वरूपा मान कर आदर किया जाता था।
हालांकि कुछ आधुनिक शोध व लेख चँद्रकिरणों का मासिकधर्म पर कुछ न कुछ प्रभाव तो अवष्य मानते हैं , खासकर मासिकधर्म के दौरान रात्री में सोते समय। कईयों ने तो चँद्रकला का काल व मासिकधर्म का काल (28 दिन ) का संबंध भी स्थापित किया है।
प्रसिद्ध मनौविशलेषक , Estter Hardning ने मासिकधर्म के संबंध में प्रचलित क्रियाकलापों तथा चँद्र व नारी - प्रकृति पर बहुत अध्ययन व शोध किया था। सामाजिक व्यवहार के अध्ययन पर पाया गया कि यदि ” उच्च शिक्षा प्राप्त पश्चिमी दुनिया ” को छोड़ दें , तो पाएंगे कि मासिकधर्म को एक अभिशाप के रूप में लिया जाता है और इसे वर्जित कर्म की श्रेणी में गिना जाता है। ‘ वर्जित कर्म ' भी एक जिज्ञासा उत्त्पन्न करने वाला शब्द है। मासिकधर्म के संबंध में इस शब्द का अर्थ है गंदा , अभिशप्त , एकांत में करने योग्य कर्म , गुप्त रखने योग्य कर्म इत्यादि। और हम पाते हैं कि कईं आदिवासी व पिछड़ी प्रजातियों में रजस्वला नारी को कुछ इस प्रकार की अभिशप्त दृष्टि से देखा जाता है कि यदि उसने किसी वस्तु को छूभर भी दिया तो वस्तु भी अभिशप्त हो जाती है व अपना प्रभाव खो देती है। यही कारण है कि मासिकधर्म के समय नारी अन्य लोगों के साथ नहीं रह सकती , उनके समीप नहीं जा सकती , यहाँ तक की दिनचर्या के कार्य भी नहीं कर सकती। |
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