परंतु इस लेख का मूल विषय यह है कि अधिक्तर सांसारिक धर्मों ने मासिकधर्म के संदर्भ में दो विभिन्न शब्दों ”अशुद्ध” व ”अशुभ” में सम्मिश्रण पैदा कर दिया है।
दूसरे शब्दों में कहें तो मासिकधर्म के संबंध में सामान्य विचारधाराऐं अनुचित हैं। और यह अनुचित विचारधाराऐं असल में अशुद्ध व अपरिपक्व कल्पनाऐं हैं, जड़ व अचेतन मन की कोरी कल्पनाऐं हैं, जो यह जताती हैं कि ”अशुद्ध” व ”अशुभ” का अर्थ एक ही है। जबकि ऐसा नहीं है।
प्रायः कईं धर्म इन शब्दों का प्रयोग अदला-बदली करके करते रहते हैं (कम से कम सामान्य प्रयोग में तो ऐसा ही है), परंतु धार्मिक मान्यताओं का अनुसरण करने वाले जब शास्त्रों को अध्ययन करते हैं तो वह इन शब्दों को पर्यायवाची के रूप में करने से बचते हैं। कम से कम हिंदू धर्म के अनुसार - वह जो धार्मिक दृष्टि से ”अशुद्ध” हो, आवश्यक नहीं कि वह ”अशुभ” भी हो।
“अशुद्धि” का अर्थ होता है भौतिक शरीर का किसी कारण से दूषित हो जाना जिसे सनानादि करके शुद्ध किया जा सकता है। व ”अशुभता” आभासिय है अर्थात यह मानसिक अवस्था होती है जो किसी पापकर्म से उत्त्पन्न होती है, जैसे कि किसी ब्राह्मण द्वारा किसी परनारी के साथ संसर्ग करने से वह ब्राह्मण अशुभ की संज्ञा पाता है और जैसे किसी नारी द्वारा पतिधर्म का आचरण न करने से वह नारी अशुभ की संज्ञा पाती है। और अशुभता को सनानादि करके शुभ नहीं किया जा सकता वरन् इसके निवारण के लिए पश्चाताप एवं घोर प्रायश्चित करना पड़ता है, जिसमें कई जन्म भी लग सकते हैं।
यह किसी भी प्रकार मानने योग्य बात नहीं लगती, कि धर्म संकेत करता है, कि एक नारी अपने मूल नारित्व के समय ”अशुभ” होती है। कम से कम वैदिक धर्म, जिसे प्राचीनतम् धर्म की संज्ञा प्राप्त है, वह ऐसा निर्देश नहीं दे सकता। इतने ज्ञानी-ध्यानी धर्माचार्याें के होते हुए, जिन्होंने नारी को देवी की संज्ञा दी हो, इस प्रकार की त्रुटी नहीं हो सकती। नारी के मासिकधर्म काल का संबंध शारीरिक व मानसिक अवस्था से होता है, जिसमें नारी ‘शुद्धिकरण की प्रक्रिया‘ के उस दौर से गुजरती है, जिसमें वह अपनी मूल प्रकृति अर्थात मूल-नारित्व को अनुभव करती है। और यह मानने योग्य बात नहीं लगती, कि प्राचीन काल के वह महानुभव, जिन्होंने वैदिक धर्म की नींव रखी हो, वह प्रकृति द्वारा होने वाली किसी भी क्रिया-प्रक्रिया को ‘अशुभता‘ की दृष्टि से देखें।
ऐसा प्रतीत होता है कि किन्हीं अज्ञानी व लालची पंडितों का यह षड्यंत्र था जिस कारण नारी लंबे समय से इस भ्रांती का शिकार हो रही है।
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