यदि हम तटस्थ विश्लेषण (Neutral Analysis) करें तो पाऐंगे कि ‘हम आम लोग' शोषण व दुष्कर्म करने वालों के अवगुण तो देख लेते हैं, पर कभी अपने अवगुणों का अवलोकन नहीं करते हैं। तनाव में रहना, स्वयं को महत्त्वहीन समझना, दूसरों के दबाव में रहना, नाखुश, असंतुष्ट व अशांत मन; यह सब अवगुण ही हैं जो चेतना की शिथिलता अर्थात असक्रियता का ही परिचायक है। अपने शोषण के हम स्वयं जिम्मेदार हैं, कोई और नहीं।
चेतना की असक्रियता के कारण दुष्कर्म करने वालों में शोषण करने के गुण उपजते हैं। और उसी चेतना की असक्रियता के कारण ‘हम आम लोगों' में शोषित होने के गुण उपजते हैं। इसका अर्थ है कि चेतना के स्तर पर शोषण करनेवाला और शोषित होनेवाला बराबर हैं।
जी हां, बराबर हैं! किसी आम मनुष्य को धन-दौलत व सत्ता का बल दे कर देखिए... थोड़े ही समय में वह भी शोषण करने वालों की सूची में शामिल दिखेगा। और फिर पहले से शोषण करने वालों के साथ मिल कर और अधिक बलवान व अमीर बनने के लिए कैसे भी उचित-अनुचित कार्योें में लिप्त हो जायेगा।
परंतु इकहने का अर्थ यह है कि शोषण करने वाला हम आम लोगों से भिन्न नहीं है। बस अंतर है तो इतना कि उन्हें लंबे समय से धन-दौलत, सत्ता, बल और रुतबा प्राप्त है, और हमें यह सब प्राप्त नहीं है।
यदि किसी उपाय से हम इन दुष्कर्म करने वालों को इस संसार से मिटा सकें; तो क्या हम अपना व अपने समाज का उद्धार कर पायेंगे?
कभी नहीं कर पायेंगे! चेतना की सक्रियता का स्तर बढ़ाये बिना कभी नहीं कर पायेंगे। यह समस्याऐं हमारे भयग्रस्त संसार की उपज हैं, जो चेतना की सक्रियता के अभाव में किसी न किसी रूप में फिर से उत्पन्न हो जायेंगी। |