|
वास्तविक्ता में हममें व्याप्त अहम् की अधिकता व भयग्रस्त सोच, जो हमारे मन पर हावी हो जाती है, की वजह से हमारी चेतना शिथिल पड़ जाती है। अक्सर लोगबाग चेतना को मात्र प्राण समझकर, इस परमात्मिक ऊर्जा को सीमित दायरे में बांध देते हैं। नित्यप्रति अनुभव में आने वाली समस्याओं और दुष्क्रियाओं का कारण चेतना की असक्रियता ही है। चेतना की शिथिलता का कारण भय और अहम् है।
हर कोई जानता है कि हममें से वे कौन लोग हैं जो दुष्कर्म व दूसरों का शोषण करते हैं। अपने आसपास देखें तो हम दुष्कर्मियों की एक सूची तैयार कर सकते है - ‘स्वयं पर केंद्रित सरकारें, प्रशासनिक, राजनैतिज्ञ'; वैश्विक समुदाय; सत्ता के भूखे लोग; अशिक्षित व गरीब लोग; ‘शिक्षित किंतु समाज के प्रति रूखा नज़रिया रखने वाले अर्थात अपने कत्र्तव्यों के प्रति बेपरवाह वो लोग जिन्हें आसानी से मूर्ख बनाया जा सकता है'; अमीर व बलवान लोग जो चालाकी से काम निकालने की कला में निपुण होते हैं व दूसरों का शोषण करके स्वयं को आर्थिक व सामाजिक रूप से बलवान बनाते हैं; और अंत में वे लोग जो अपनी अंधविश्वासी विचारधारा व रूढ़िवादी सिद्धांतों से ऐसे चिपके हैं कि उन्हें न तो कुछ और नज़र आता है और न ही वे किसी दूसरे के विज्ञानसिद्ध सिद्धांतों व तात्त्विक विचारों की परवाह करते हैं; बस अहम् के मारे (वास्तविक्ता में भयग्रस्त हुए) अंधविश्वासों से चिपके रहते हैं।
यह सब लोग अकेले व सामूहिकरूप से, संसार में व्याप्त भय, दुःख, क्रोध, आतंक, रोष, राग व द्वेष आदि अवगुणों के जिम्मेदार हैं। यही लोग चेतना की शिथिलता का कारण हैं।
परंतु इन के साथ साथ लोगों का एक और समूह है जो इनके समान ही जिम्मेदार है। और वह हैं - ”हम आम लोग”। ‘हम आम लोग' जो बलहीन हैं; ‘हम आम लोग' जो हर प्रकार की मेहनत करते हैं किंतु उस मेहनत का फल दूसरे बलवान भोगते हैं; ‘हम आम लोग' जो तनावग्रस्त हैं, दबाव में हैं, महत्वहीन हैं; ‘हम आम लोग' जो अधिक श्रम करते हैं, और जो नाखुश हैं, असंतुष्ट हैं, अशांत हैं। ‘हम आम लोग' जो दूसरों के दिखाऐ रास्ते पर बिना उचित-अनुचित का ज्ञान किऐ, भेड़ बकरियों की तरह एक दूसरे के पीछे भागे चले जा रहे हैं। ‘हम आम लोग' जो वास्तविक्ता को समझने की क्षमता तो रखते हैं पर जज़्बा नहीं रखते।
”पर क्या आप जानते हैं कि ‘हम आम लोगों' में (जो शोषण का शिकार होते हैं) और शोषण करने वाले ‘अमीर और बलवान लोगों में‘ मात्र एक ही अंतर है, और वह अंतर है कि वे अमीर और बलवान लोग, ‘अमीर और बलवान लोग' हैं - बस और कुछ नहीं!” वरन् ‘हम आम लोग' हों, अथवा अमीर और बलवान लोग हों, हम सभी परमात्मिक चेतना की शिथिलता का शिकार हैं। |
|
|