चलिए मान लेते हैं कि आज के युग में मनुष्य अपने वर्तमान जीवन में ही उन्नति चाहता है। उसे अपने आने वाले जीवन चक्र से कोई मतलब नहीं है। वह इस बात पर कोई बल नहीं देता है कि पिछला अथवा अगला जीवन भी होता है या नहीं। वह तो किसी ज्योतिषी के पास मात्र तत्कालीन समस्या के निवारण हेतु जाता है और आज के अनुभवहीन व ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को समझने में अक्षम ज्योतिषी भी मात्र इस जीवन से संबंधित ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन करके उस समस्या का निवारण करने के लिए कुछ भी उचित-अनुचित उपाय करने के लिए कह देते हैं। और पीड़ित व्यक्ति उस उपाय को बिना उसका दीर्घकालिक प्रभाव समझे कर लेता है और साधारणतया विफलता ही परिणाम स्वरुप सामने आती है। और यदाकदा सफलता प्राप्त होती भी है तो उसके दुष्परिणाम जातको भविष्य में भुगतने ही पढ़ते हैं।
यह ‘वैश्विक सिद्धांत‘ है कि दुख, कष्ट, बीमारी, व्याधि, हानि इत्यादि अशुभ संकेत पूर्व में हमारे द्वारा ही किए गए पाप कर्म का परिणाम होते हैं, जो कि समय के अनुसार हमारे जीवन में उत्पन्न होते रहते हैं। (यही सिद्धांत सुख, लाभ, प्रसन्नता इत्यादि शुभ संकेतों पर भी लागू होते हैं)।
अनुभवहीन ज्योतिषी वर्तमान ग्रह-गोचर की गणना से वर्तमान समय को अनुकूल करने के लिए उपाय बता देते हैं, परंतु वह ना तो उस जातक के पिछले जन्मों में अपनाई गई ‘कर्म-पद्धति‘ को समझ पाते हैं और ना ही उपायों से भविष्य या अगले जन्मों में उत्पन्न होने वाले कुप्रभावों को समझ पाते हैं।
उन्हें तो बस अभी के लिए उपाय सुझाने हैं, फिर चाहे उस उपाय का जो भी परिणाम हो। वह ज्योतिषी भी अनजाने में ही पाप का भागी बन जाता है।
वहीं एक अनुभवी और ‘प्राकृतिक सिद्धांत‘ को समझने व मानने वाला योगी (ज्योतिषी) जातक के पिछले जन्म में और अब तक के बिताए हुए जीवन की ‘कर्म-प्रणाली‘ को समझ कर और भविष्य के जीवन व अगले जन्मों पर पड़ने वाले प्रभाव को समझ कर और समाधान की ‘ग्रह के अनुकूल प्रसांगिकता‘ सिद्ध होने पर ही उसे करने का परामर्श देता है।
और मेरे अनुसार वर्तमान युग में ‘प्राकृतिक सिद्धांत‘ के अनुसार ‘ज्योतिष विद्या‘ का अनुसरण करने वाले कुछ ही ज्योतिषी होंगे। |