यह मनुष्य और देवताओं का स्वभाव है कि वे बदनाम लोगों का संग स्वीकार नहीं करते हैं। शनि एक ऐसा ही नाम है जिसे न केवल मनुष्य वरन् अन्य ग्रह तारे भी मिलना नहीं चाहते। और ऐसा केवल नापसंदगी के कारण ही नहीं वरन् भय के कारण भी है।
इस संसार में ऐसा कौन होगा जो ऐसे सर्द, बूढ़े, भावहीन और भयानक आकृति वाले ग्रह को प्रेम करेगा जो क्रूरता को एक आभूषण समान धारण करता हो!
जी हाँ, जब तक आप शनि की वास्तविक्ता को व उनकी उदारता को नहीं समझेंगे, उनसे प्रेम करना तो दूर उनका आदर भी नहीं कर सकेंगे। जब तक आप नासमझ ज्यातिषियों और डर का वातावरण बनाकर अपना फायदा करने वाले पंडितों और तथाकथित बुद्धिजीवियों की करनी से स्वयं को अलग करके नहीं सोचेंगे, तब तक उनसे प्रेम कर नहीं कर पाएंगे।
"और मेरा विश्वास है कि किसी मनुष्य द्वारा की गई यह सबसे बड़ी गलतियों में से एक है।" न्यायधीश की उपाधि प्राप्त होने के उपरांत भी ‘प्राकृतिक संहिता‘ की कार्यप्रणाली के कारण शनि को इस प्रकार का प्रारब्ध प्राप्त हुआ जिसका प्रभाव सामान्यतः भयंकर ही होता है और जिसकी सक्रियता कठोर कार्मिक सबक सिखाती है। और शनि का यह प्रभाव केवल मनुष्य जाति पर ही नहीं वरन् अन्य ग्रहों, राशियों, नक्षत्रों, देवों, असुरों आदि सभी पर होता है।
तात्विक दृष्टि से देखें तो शनि को ‘वैश्विक पुलिसवाला‘ भी कह सकते हैं, जो उन सभी लोकों पर अपनी सख्त निगाह रखते हैं जो ‘कर्मों के सिद्धांत‘ को अपनाते एवं मानते हैं। कर्मफलदाता होने के नाते शनि का प्रभाव हमारे जीवन पर हर समय बना ही रहता है। ‘शनि की सक्रियता अवधि‘ का अर्थ है उनकी दशाऐं, गोचर, साढे-साती, ढइया आदि।
‘प्राकृतिक संहिता‘ ने शनि के लिए दो ‘सहायक ग्रह‘ नियुक्त किए हैं - 'राहु' एवं 'केतु'। ब्रह्मांड के सबसे पुराने ग्रह होने के नाते राहु व केतु को कर्मों को संजो कर रखने वाला कहा गया है। केतु हर बीतने वाले क्षण से संबंधित है और हमारे द्वारा किए गए हर कर्म को संग्रहित करता है! और राहु हमारे भविष्य के कर्म पथ का प्रबंधन करता है। कर्म फल देने हेतु शनि को इन दोनों ‘कर्म संग्राहक ग्रहों‘ से सहायता मिलती है।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अपनी सक्रियता के समय शनि मात्र पाप कर्मों से उत्पन्न दुःख ही नहीं देते हैं वरन् परमसुख भी प्रदान करते हैं । वे अच्छे और बुरे में भेदभाव नहीं करते हैं। वे एक न्यायाधीश की ही भांति सदैव सर्द, भावहीन और परिशुद्ध रहते हैं।
‘वैश्विक पुलिस‘ वाली संज्ञा तो मात्र उनका एक कठोर, परंतु बाहरी आवरण ही है। आत्मिक स्तर पर शनि की भांती कल्याणकारी ग्रह दूसरा कोई नहीं हो सकता। यदि शनि की सक्रियता की समय अवधि में ‘सद्बुद्धि‘ एवं ‘प्राकृतिक संहिता‘ का ज्ञान प्राप्त करना चाहें तो निःसंदेह वह अवधि आपके जीवन का सुनहरा काल सिद्ध हो सकती है।
परंतु शनि को समझने में नाकाम और उन से भयभीत कुछ नासमझ पंडितों व बुद्धिजीवियों ने शनि के संबंध में कईं भ्रांतियां फैलाईं, जो समय के साथ कुरीतियों में परिवर्तित होती गईं और जनसाधारण के मन में शनि के लिए अनादर व डर बैठता गया। इन नासमझ पंडितों व बुद्धिजीवियों ने ही शनि जैसे सबसे पवित्र व कर्मठ ग्रह को इतना विभत्स चेहरा प्रदान किया है। |