Love Shani - The Key to Success

Chapter No. 4 - शनिदेव का जन्म व उनकी न्यायधीष के रूप में नियुक्ति

 

किसी की जन्मपत्री में शनि आयु, पूर्ण आयु, बंधन, अनुशासन, पितर, पूर्वज, बड़े-बुजुर्ग, वैराग्य, बुद्धिमत्ता एवं यथार्थ ज्ञान के कारक होते हैं। वह छिपे धन, धैर्य, मानसिक व नैतिक साहस के परिचायक है। शनिदेव कलयुग के महाराज हैं वह अत्यंत उग्र, क्रोधी, प्रचंड और रूढ़िवादी ग्रह सूर्य के पुत्र हैं।

उनकी मां हैं छाया देवी, जो कि सूर्य देव की पहली पत्नी संज्ञा देवी का ही प्रतिबिंब हैं। जिस काल में शनिदेव अपनी मां के गर्भ में थे उस काल में उनकी मां छाया भगवान शिव की तपस्या में इस प्रकार लीन हुई कि उन्हें ना तो अपनी सुध रही और ना ही अपने गर्भ में पल रहे अपने शिशु की। वह अपनी तपस्या में इतनी मग्न थी कि गर्भस्थ शिशु की देखभाल ना कर पाईं, और जिसके कारण शनिदेव बहुत ही अधिक नाजुक अवस्था में, कमजोर व काले वर्ण सहित पैदा हुए।

अपने पुत्र को देखकर, जोकि उनके जैसा आभायुक्त एवं शक्तिशाली नहीं था, सूर्य देव ने शनिदेव व छाया दोनों का ही परित्याग कर दिया। दोनों को तिरस्कार व वेदना सहनी पड़ी।

जैसे जैसे समय बीतता गया शनि देव सूर्य देव से अपने व अपनी मां के अपमान का बदला लेने को आतुर होने लगे। और इसी प्रयोजन से उन्होंने भगवान शिव की गहन तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें उनके पिता के ही समान शक्तियां व दृष्टि प्रदान कर दी। इतना ही नहीं भगवान शिव ने उन्हें कर्मफल दाता भी नियुक्त कर दिया जो सभी के कर्मों के अनुसार ही भोग एवं भुगतान प्रस्तुत करते हैं। भगवान शिव ने उन्हें न्यायाधीश नियुक्त कर दिया।

‘धर्म एवं मृत्यु के देवता यमराज‘ शनि देव के भाई हैं और यमुना देवी उनकी बहन हैं।

श्री शनिदेव जी महाराज कलियुग के देव हैं। वह कर्मठ वर्ग के प्राणियों के कारक ग्रह हैं।

 

 
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