ईश्वर से मिलने की पहली व अंतिम शर्त !
 

एक छोटी सी दिव्य कथा -

एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा था और एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ।

उस रियासत के राजा ने जाकर संन्यासी को कहा , ‘ हे स्वामी , एक प्रश्न बीस वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूं , लेकिन कोई उत्तर नहीं मिलता ! क्या आप मुझे उत्तर देंगे ' ?

स्वामी ने कहा , ‘ निश्चित दूंगा '!

राजा के संकोच को जान कर संन्यासी ने राजा से कहा , ‘ चिंता न करो , आज तुम खाली नहीं लौटोगे , निःसंकोच पूछो' !

उस राजा ने कहा , ‘ हे गुरुवर , मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूं ! कृप्या ईश्वर क्या हैं , यह समझाने का प्रयास मत कीजिएगा ! मैं सीधा ही मिलना चाहता हूं !'

उस संन्यासी ने कहा , ‘ अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर '?

राजा ने कहा , ‘ क्षमा कीजिए गुरुवर ! पर शायद आप समझे नहीं ! मैं ‘ परमपिता परमात्मा' की बात कर रहा हूं ! कहीं आप यह तो नहीं समझे कि मैं किसी ‘ ईश्वर नाम वाले आदमी' की बात कर रहा हूं जिसके लिए आप कहते हैं कि अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हो' ?

उस संन्यासी ने कहा , ‘ महानुभाव , इसमें भूल की कोई गुंजाइश नहीं है ! मैं तो दिनभर परमात्मा से मिलाने का धंधा ही करता हूं ! सो बताइए अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हैं ! सीधा जवाब दें ! बीस साल से मिलने को उत्सुक हो और आज समय आ गया है तो मिल ही लो !'

राजा ने हिम्मत की ! उसने कहा , ‘ अच्छा स्वामी , मैं अभी मिलना चाहता हूं , मिला दीजिए' !

संन्यासी ने कहा , ‘ तो ठीक है राजन ! कृप्या कर , इस छोटे से कागज पर अपना नाम , पता व अपने बारे में अन्य आवश्यक विवरण लिख दें , ताकि मैं भगवान के पास पहुंचा दूं कि आप कौन हैं !'

 
     
     
     
 

राजा ने लिखा -- अपना नाम , अपनी आयु , अपना महल , अपना परिचय , अपनी उपाधियां और संन्यासी को दे दी।

वह संन्यासी बोला , ‘ महाशय , बुरा मत मानिएगा परंतु ये सब बातें तो मुझे झूठ और असत्य मालूम होती हैं जो आपने कागज पर लिखीं हैं '!

उस संन्यासी ने कहा , ‘ राजन ! अगर तुम्हारा नाम बदल दें तो क्या तुम बदल जाओगे ? तुम्हारी चेतना , तुम्हारी सत्ता , तुम्हारा व्यक्तित्व दूसरा हो जाएगा' ?

उस राजा ने कहा , ‘ नहीं गुरुवर , नाम के बदलने से मैं क्यों बदलूंगा ! नाम नाम है और मैं मैं हूं' !

संन्यासी ने कहा , ‘ तो राजन ! एक बात तो तय हो गई कि नाम तुम्हारा परिचय नहीं है , क्योंकि तुम उसके बदलने से बदलते नहीं हो। अच्छा बताओ , आज तुम राजा हो , कल यदि किसी कारणवश गांव के भिखारी हो जाओ तो क्या तुम बदल जाओगे' ?

उस राजा ने कहा , ‘ कदापि नहीं स्वामी ! राज्य चला जाएगा , भिखारी हो जाऊंगा , लेकिन मैं क्यों बदल जाऊंगा ? मैं तो जो हूं वो हूं। राजा होकर जो हूं , भिखारी होकर भी वही रहुँगा। न होगा मकान , न होगा राज्य , न होगी धन - संपति , लेकिन मैं , मैं तो वही रहूंगा जो मैं हूं' !

तो संन्यासी ने कहा , ' तो राजन ! यह बात भी तय हो गई कि राज्य तुम्हारा परिचय नहीं है , क्योंकि राज्य छिन जाए तो भी तुम बदलते नहीं हो ! अच्छा जरा बताइए राजन कि आपकी आयु कितनी है' ?

उसने कहा , ‘ चालीस वर्ष' !

संन्यासी ने कहा , ‘ तो क्या पचास वर्ष के होकर तुम दुसरे हो जाओगे ? बीस वर्ष या जब तुम बच्चे थे तब क्या तुम दुसरे थे' ?

उस राजा ने कहा , ‘ नही गुरुवर उम्र बदलती है , शरीर बदलता है लेकिन मैं , मैं तो जो बचपन में था , जो मेरे भीतर था , वह आज भी है' !

उस संन्यासी ने कहा , ' इसका अर्थ उम्र भी तुम्हारा परिचय न रही , तुम्हारी पद्धवी और शरीर भी तुम्हारा परिचय न रहा ! फिर तुम कौन हो , उसे लिख दो तो पहुंचा दूं भगवान के पास , नहीं तो तुम्हारे साथ साथ मैं भी झूठा बनूंगा ! यह कोई भी परिचय तुम्हारा नहीं है” !

   
     
     
     
 

राजा बोला , ‘ तब तो बड़ी कठिनाई हो गई ! अपना परिचय तो मैं भी नहीं जनता ! जो मैं वास्तविक्ता में हूं , उसे तो मैं नहीं जनता ! मैं तो अपने शरीर , नाम व पद्धवी को ही को ही जानता हूं कि यही है मेरा होना' !

उस संन्यासी ने कहा , ‘ फिर तो बड़ी कठिनाई हो गई राजन ! क्योंकि जिसका मैं परिचय भी न दे सकूं , बता भी न सकूं कि कौन मिलना चाहता है , तो भगवान भी क्या कहेंगे कि भाई तू किसको मुझ से मिलाना चाहता है' !

सो राजन ! जाओ पहले इसको खोज लो कि तुम कौन हो! और मैं तुमसे कहे देता हूं कि जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम कौन हो , उस दिन तुम मेरे पास परमात्मा को खोजने नहीं आओगे' !

क्योंकि यह शाश्वत सत्य है कि खुद को जानने में उसे भी जान लिया जाता है जो परमात्मा है' !

----

तो दोस्तों, कहानी यहाँ समाप्त होती है। लेकिन सवाल अभी भी बाकी है।

क्या आप खुद को खोजना चाहते हैं?

 

मित्रो, स्वयं को जानने का एक सरल साधन है , “ स्वचेतना” नामक ग्रंथ का अध्ययन !

इस ग्रंथ के माध्यम से आप न केवल स्वयं' को जानेंगे अपितु ‘ परमात्मा' और ‘ प्रकृति' के रहस्यों को सरल भाषा में समझ पाऐंगे।

स्वचेतना ग्रंथ को रचने के लिए परमात्मिक चेतना ने शशी कपूर को माध्यम बनाया। आप भी दिव्य ग्रंथ का अध्ययन कर परमात्मा की अनुकंपा का पात्र बन सकते हैं।

वैसे तो परमात्मिक ज्ञान का कोई मूल्य नहीं होता , तो भी ग्रंथ का कुछ मूल्य रखा गया है ताकि मात्र वही लोग इसका अध्ययन करें जो इस विष्य की गंभीरता का समझते हों।

तो आइए , स्वयं को जानें ...

ग्रंथ के बारे में अधिक जानने के लिए नीचे दी गई तस्वीर पर क्लिक करें...

   
     
     
 
 
Our Ch. Astrologer

Some images displayed on the Website may be AI/Digitally-generated and for reference/illustration purposes only. Actual product may/will vary in appearance while retaining its natural and authentic characteristics.
Contact Us - About Us - Privacy Policy - Disclaimer - Terms & Conditions - Cancellation & Refund - Shipping & Delivery

© Shashi Kapoor (Delhi, India) - 2025, All rights reserved
Site best viewed in 800 X 600 resolution