ग्रहों के उपाए सफल क्यों नहीं होते ?

Chapter 2 - तो आखिर जानना क्या है?

 

मेरे मतानुसार हर वह व्यक्ति जो ज्योतिष विद्या में आस्था रखता हो, या जो ज्योतिष विद्या का अध्ययन करता हो, या वह भी जो अब ज्योतिषी बंन कर मात्र अपने हित के लिए उपाय बताता हो, उसे ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को अवश्य ही समझना चाहिए। उसके बिना ना तो पीड़ित का और ना ही ज्योतिषी का कल्याण संभव है।

मेरे मतानुसार ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को समझने का सीधा व सरल उपाय है - स्वयं को प्रकृति से जोड़ना। प्रकृति की कार्यप्रणाली को समझना ही ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को समझना है।

स्वयं को समझिए, अपने शरीर को समझिए, अपनी उत्पत्ति को समझिए। मन, बुद्धि, संस्कार, सुख-दुख, विचार, स्वभाव एवं कर्मों के सिद्धांत को समझिए। चेतना, आत्मा व परमात्मा को समझिए। धर्म, सत्य, दान, पूजा, पश्चाताप, प्रायश्चित को समझिए। प्रकृति के तीनों गुणों (सात्विक, राजसिक, तामसिक गुण) को समझिए। प्रकृति का आदर कीजिए। अंधविश्वासों से ऊपर उठिए। और सबसे महत्वपूर्ण बात - स्वयं में स्थित ‘स्वचेतना‘ को समझकर, उसके स्तर को उन्नत कीजिए।

इन सब ज्ञानसंज्ञक विषयों को स्वयं में धारण करने के उपरांत ही ज्योतिष-विज्ञान की व्यवहारिकता सिद्ध हो पाएगी।

 

 
 
 

वैदिक काल के सभी माननीय ऋषि गण अपने गुरुकुलों में ज्योतिष-विज्ञान से पूर्व प्रकृति के नियमों के अनुसार जीवन व्यतीत करने की कला सिखाते थे। प्रकृति के अनुरूप ढल कर बोलना, उठना, बैठना, चलना, सोना, खाना-पीना, दौड़ना-भागना, आदि सिखाया जाता था। उसके बाद प्रकृति के अनुरूप ढलकर व्यवहार करना सिखाया जाता था। वर्षों के अभ्यास के उपरांत ‘परमात्मिक-ज्ञान‘ पढ़ाया जाता था जिसे ‘वैश्विक सिद्धांत‘ भी कहते हैं। उसके उपरांत कहीं जाकर ‘आयुर्वेद‘ एवं ‘ज्योतिष‘ की विद्या प्रदान की जाती थी।

और यह नियम आज भी लागू होता है क्योंकि ‘वैश्विक सिद्धांत‘ के अनुसार किसी भी कालखंड में प्रकृति के नियम नहीं बदलते हैं।

परमात्मा के ज्ञान अर्थात ‘वैश्विक सिद्धांत‘ को समझने के लिए ‘स्वचेतना‘ नामक ग्रंथ का अध्ययन अवश्य ही करना चाहिए और प्राकृतिक रूप से जीवन-चक्र को समझते हुए ज्योतिष विज्ञान का अनुसरण करना चाहिए।

 
 

 

 
 
Our Ch. Astrologer

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