हमारा सूर्य - ग्रहों का राजा !!!

Chapter No. 1 - अपने सूर्य से मिलिए

 
ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरूणस्याग्नेः ।
आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्षं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च ।।
।। यजुर्वेद ।।

अनुवाद-

‘जो तेजोमयी किरणों के पुंज हैं, मित्र, वरुण तथा अग्नि आदि देवताओं एवं समस्त विश्व के प्राणियों के नेत्र हैं और स्थावर-जंगनात्मक समस्त जीवनिकाय के अंतर्यामी आत्मा हैं, वे भगवान सूर्य आकाश, पृथ्वी और अंतरिक्ष लोक को अपने प्रकाश से पूर्ण करते हुए आश्चर्य रूप से उदित हो रहे हैं।‘


महर्षि वशिष्ठ जी भगवान सूर्य की स्तुति करते हुए कहते हैं-

विवस्वते ज्ञानभृदन्तरात्मने
जगत्प्रदीपाय जगद्धितैषिणै।
स्वयमभुवे दीप्तसहस्त्रचक्षुषे
सुरोत्तमायामिततेजसे नमः।।

अनुवाद-

“जो ज्ञानियों के अंतरात्मा, जगत को प्रकाशित करने वाले, संसार के हितैषी, स्वयंभू तथा सहस्त्र उद्दीप्त नेत्रों से सुशोभित हैं, उन अमित तेजस्वी सुरश्रे्ष्ठभगवान सूर्य को नमस्कार है।“

विश्व में कई प्रकार के ज्योतिष प्रणालियां प्रचलन में है जैसे वैदिक ज्योतिष, पाश्चात्य ज्योतिष इत्यादि। सभी ज्योतिष प्रणालियों की अपनी कार्यशैली है, परंतु ‘सूर्य‘ एक ऐसी इकाई है जिसे हर ज्योतिष प्रणाली में प्रधानता प्राप्त है।

सूर्य हमारे सौरमंडल की ऊर्जा का केंद्रक स्रोत है। ज्योतिष को ना मानने वाले भी सूर्य को ‘जीवन शक्ति ऊर्जा‘ के रूप में स्वीकार करते हैं। और ज्योतिष में विश्वास करने वाले तो सूर्य को भगवान तथा पिता के स्तर से सुशोभित करते हैं।

सूर्य है तो जीवन है, हम हैं। सूर्य हैं तो इस लोक में जल है, अग्नि है, वायु की गति है। सुर्य है तो हम रंगों को अनुभव कर पाते हैं। सूर्य से ही प्रकाश हैं और इसी के कारण छाया भी विद्यमान है। सूर्य हमारी पृथ्वी पर मौसम चक्र को परिभाषित करता है।

जन्मपत्री में सूर्य की परिस्थिति द्वारा निर्देशित हमारी आत्मिक प्रकृति ही हमारे गुणों हुनर और आचरण को परिभाषित करती है

खगोल शास्त्र की दृष्टि से देखें तो सभी ग्रह तारे एवं नक्षत्र हमें निर्जीव से प्रतीत होते हैं परंतु हमारे वैदिक काल के ऋषि मुनियों की मान्यता अनुसार ज्योतिष मूल रूप से नक्षत्र संबंधी विज्ञान है जिसमें हर ग्रह, तारा समूह, नक्षत्र का किसी ना किसी मानव रूपी जीवन से संबंध है, जिसे हम उस ग्रह, राशि व नक्षत्र का अधिष्ठाता स्वामी कहते हैं।

हमारे सूर्य का भी मानव रूप है, गुण हैं। यहां सूर्य को ‘हमारा सूर्य‘ इसलिए कहा है क्योंकि हमारे पौराणिक ग्रंथ व शास्त्र बार-बार बताते हैं कि हमारे लोक के अतिरिक्त भी कई दृश्य-अदृश्य महान लोक हैं जिनके अपने-अपने सूर्य हैं। इसलिए जिस लोक में हम हैं वहाँ का सूर्य ‘हमारा सूर्य‘ ही कहलाएगा।

 
Our Ch. Astrologer

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